________________
मूकमाटी-मीमांसा :: 313
काव्यानुभूति के माध्यम से अभिव्यक्त करना आधुनिक सन्दर्भो में एक प्रशस्य उपलब्धि है।
समाजवाद के थोथे नारों पर व्यंग्य करते हुए समाजवाद के सही अर्थों की ओर कविवर आचार्यश्री ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया है :
"स्वागत मेरा हो/मनमोहक विलासितायें/मुझे मिलें अच्छी वस्तुएँऐसी तामसता भरी धारणा है तुम्हारी/फिर भला बता दो हमें, आस्था कहाँ है समाजवाद में तुम्हारी?/सबसे आगे मैं/समाज बाद में। अरे कम-से-कम/शब्दार्थ की ओर तो देखो !/समाज का अर्थ होता है समूह और/समूह यानी/सम-समीचीन ऊह-विचार है/जो सदाचार की नींव है। कुल मिला कर अर्थ यह हुआ कि/प्रचार-प्रसार से दूर प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है। समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से/समाजवादी नहीं बनोगे।"
(पृ. ४६०-४६१) 'कामायनी' को यदि हम हिन्दी का प्रथम मनोवैज्ञानिक महाकाव्य मानते हैं तो 'मृकमाटी' को सर्वप्रथम सफल दार्शनिक महाकाव्य की संज्ञा दी जा सकती है । 'कामायनी' में मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के विकास को प्रलय के सूक्ष्म कथानक के समन्वय से गति प्रदान की गई है । अन्त में श्रद्धा और मनु को 'शैव दर्शन' की सहायता से आनन्दोपब्धि होती है। 'कामायनी' के सर्ग शीर्षक-चिन्ता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इड़ा, स्वप्न, संघर्ष, निर्वेद, दर्शन, रहस्य, आनन्द - इस बात का संकेत करते हैं। 'मूकमाटी' की आनन्दोपलब्धि आत्मोपलब्धि पर निर्भर करती है । जैन दर्शन श्रमण-धर्म पर विश्वास करता है । शैव दर्शन प्रवृत्तिपरक है, तो जैन दर्शन निवृत्तिपरक । इसीलिए जैन दर्शन में तपस्या, अनुशासन, त्याग, अहिंसा, शान्तिप्रियता, निर्लिप्त जीवन को ही महत्त्व प्रदान किया जाता है। इसी जीवन दर्शन को कविता के माध्यम से सरसता के साथ ग्राह्य बनाने का उपक्रम है- 'मूकमाटी'महाकाव्य । 'मूकमाटी' काव्य के कवि की यह घोषणा कितनी महत्त्वपूर्ण है :
"मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं। और/मैं तथाकार बनना चाहता हूँ/कथाकार नहीं। इस लेखनी की भी यही भावना है-/कृति रहे, संस्कृति रहे
आगामी असीम काल तक/जागृतजीवित अजित !" (पृ. २४५) 'मूकमाटी' महाकाव्य के अनेक पात्र हैं, अनेक प्रसंग हैं । लोक जीवन से सम्पृक्त मुहावरे, बीजाक्षरों के चमत्कार, मन्त्र विद्या, माटी के आयुर्वेदिक प्रयोग, अंकों का चमत्कार, समाज दर्शन, अध्यात्म, आधुनिक जीवन में विज्ञान से उपजी कतिपय नई अवधारणाएँ, आतंकवाद, प्रलय, महावृष्टि, मनमोहक प्राकृतिक दृश्य, साहित्य, संगीत के साथ-साथ अनेक शब्दों के अर्थ-चमत्कार भी हैं।
सरिता तट की माटी, कुम्भ, कुम्भकार इस महाकाव्य के प्रमुख पात्र हैं। अन्य पात्रों में धरती, काँटा, बबूल की लकड़ी, गुरु अतिथि, स्वर्णकलश, स्फटिक झारी, महामत्स्य, मत्कुण (खटमल), मच्छर, नदी, भक्त सेठ आदि उल्लेखनीय हैं । युगों से माटी कुम्भकार की प्रतीक्षा में लीन रही है । कुम्भकार के हाथों वह अपना उद्धार चाहती थी, मंगल घट के रूप में परिवर्तित होना चाह रही थी। मंगल घट की सार्थकता गुरु के पाद-प्रक्षालन में है, जो काव्य के पात्र भक्त सेठ की श्रद्धा के आधार हैं।
हमारी भारतीय संस्कृति की उदात्तता को काव्य के अन्त में कुम्भ के मुख से निकल रही मंगल-कामना की