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________________ 'मूकमाटी' की मानवीय संवेदना डॉ. रामनारायण सिंह 'मधुर' तत्त्व परक, चिन्तन-मनन एवं दर्शन से ओतप्रोत 'मूकमाटी' का कथ्य मानवीय संवेदना से ओतप्रोत है । आध्यात्मिक उँचाइयों को स्पर्श करती हुई यह काव्य कृति मानवीय जगत् की संवेदनाओं को भलीभाँति उजागर करती है और मनुष्य को प्रेरणा भी प्रदान करती है। कविता वही है, जो प्रेम एवं सद्भावना जाग्रत करे। जो हित सहित है, वही साहित्य है । कवि के शब्दों में : "शिल्पी के शिल्पक-साँचे में/साहित्य शब्द ढलता-सा ! 'हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है और/सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो सही साहित्य वही है/अन्यथा,/सुरभि से विरहित पुष्प-सम सुख का राहित्य है वह/सार-शून्य शब्द-झुण्ड' ...!" (पृ. ११०-१११) निरर्थक शब्दों के आडम्बर को साहित्य नहीं कहा जा सकता । सुगन्धित पुष्पों की तरह सार्थक शब्दों में ही भाव सम्प्रेषण की क्षमता होती है। 'मूकमाटी' की वेदना क्या आज के सर्व साधारण की वेदना नहीं है ? अत्याचार की चक्की-तले पिसती, अर्थाभाव एवं शोषण से कराहती निर्वस्त्र, भूखी, चुपचाप पीड़ा सहती आज की भारतीय जनता क्या मूक माटी की तरह अपने मनोभावों को प्रकट कर जी-हल्का करना नहीं चाहती ? मूक माटी छटपटाकर माँ धरती से कहती है : "स्वयं पतिता हूँ/और पातिता हूँ औरों से, 'अधम पापियों से/पद-दलिता हूँ माँ ! सुख-मुक्ता हूँ/दुःख-युक्ता हूँ/तिरस्कृत त्यक्ता हूँ माँ !" (पृ. ४) कुशासन, अव्यवस्था, उत्पीड़न से व्यथित मनुष्य के मन में भी तो ऐसा ही हाहाकार है। मूकमाटी की माँ धरती चिन्तन से उसे प्रबोधित करती है। यह दर्शन की मीमांसा है। किन्तु अपने देश का निरीह प्राणी कुछ कहना भी चाहता है तो उसकी कौन सुनता है ? माँ धरती, माटी की पीड़ा समझती है, पर जनता की पीड़ा सत्ता कहाँ समझती है ? ___माटी में कंकर आदि के विकार हैं। उसे यदि शुभ मंगल घट का आकार देना है तो कंकर आदि को निकाल स्वच्छ जल से अभिसिक्त कर गूंथना होगा, तभी शिल्पी कुम्भकार उसे चाक पर चढ़ा कर मंगल घट का निर्माण कर सकेगा । मनुष्य भी तो माटी की तरह है, जिसके मन में विषय-वासनाओं, दुर्भावनाओं के विभिन्न कंकर निवास करते हैं। बिना प्रेम-भक्ति-ज्ञान के जल से सिंचित किए, मन के विकार कैसे दूर होंगे और उसकी आत्मा में मंगल घट का शुभ दीप कैसे प्रज्वलित होगा ? शिल्पी कुम्भकार से मिलने के लिए माटी बेचैन है, जैसे साधक बेचैन रहता है अन्त:करण को शुद्धकर प्रियतम प्रभु को पाने के लिए । इस सन्दर्भ में माँ धरती का यह कथन ध्यातव्य है : "प्रभात में कुम्भकार आयेगा/पतित से पावन बनने,
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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