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________________ 'मूकमाटी' का शैलीय वैशिष्ट्य डॉ. भगवान दीन मिश्र मैंने गाँव की गन्ध को गहरे तक अनुभव किया है। मैंने कुम्हार की वे सारी प्रक्रियाएँ ध्यान से देखी हैं जो घड़ा बनाते समय अपनाई जाती हैं- माटी की छाती में दराती के प्रहार, लकड़ी के हथौड़े से माटी को कण-कण करना, छन्नी लगाकर कंकड़ छानना, तदनन्तर पानी से उसे रससिक्त करना, पैरों तले रौंदना, चाक में रखकर उससे मनचाहा पात्र बनाना, हल्का सूखने पर फिर चपटे डण्डे से ठोकना - पीटना, कड़ी धूप में सुखाना, रँगना, धधकती आग में पात्र को पकाना । इस प्रक्रिया को मैं अपने अल्हड़ छात्रों को रूपक / उपमा के द्वारा समझाता आ रहा हूँ और बताता रहा हूँ कि बाजार में टनटनाते घड़े के रूप में ग्राह्य बनने के लिए उन सारे दर्दों को झेलना पड़ता है जो घड़ा झेलता है । अधपके यानी ‘सेवरे’ घड़े के खरीददार नहीं होते। वह टिकाऊ नहीं होता। मेरे दर्जनों सेवरे घड़े इस उपमा से मुस्कराते रहे हैं, बिचलित भी हुए हैं। 'मूकमाटी' काव्य में ऊपर की समस्त तथा अन्य प्रक्रियाएँ वर्णित हैं लेकिन कविवर आचार्य श्री विद्यासागर ने इसे एक नया आयाम दिया है। यह आयाम है आध्यात्मिकता का, सदाचरण का । घट और आकाश की उपमाएँ जीव एवं ईश्वर के रूप में पहले भी दी गई हैं। कबीर ने भी कई बार उल्लेख किए हैं किन्तु माटी की विकास यात्रा में काव्य के साथ एक दर्शन को गूँथना, वह भी वृहदाकार रूप में, मेरी याददास्त में पहले नहीं हुआ । इस सन्दर्भ में इस काव्य-कृति का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है । यह काव्य सूरज के जागरण से शुरू होता है। नदी तट की माटी संलाप करती है, धरती उत्तर देती है, सरित् - प्रवाह का चित्रण होता है। कुम्हार मिट्टी खोदने आता है, खुदी हुई मिट्टी को गधे की पीठ पर लादकर ले जाता है, कंकड़ बीने-छाने जाते हैं, पानी को कुएँ से खींचा जाता है, मिट्टी को गीला किया जाता है और वे तमाम प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं, जो ऊपर वर्णित हैं। आभा से दमकते मिट्टी के घड़े में पानी भरा जाता है; श्रमण के आतिथ्य में उस घड़े के सुवासित जल से पाँव पखारे जाते हैं; तृप्ति होती है व्यक्ति की, वर्ग की, समष्टि की। इस कथानक को मानवीकृत रूप किया गया है । यहाँ हर वस्तु बोलती है, घटनाएँ सन्देश देती हैं, परिस्थितियों से कवि दार्शनिक निर्वचन (इन्टर्प्रटेशन) करता है और पाठक पर प्रभाव पड़ता है मानों वह संवाद कर रहा है। कृति में कण-कण बोलता है, हँसता है, रोता है और कवि की काव्यकला का कमाल है कि इसी क्रम में सभी रसों के उद्रेक का प्रयास किया गया है। जैन मुनि ने शृंगार का भी वर्णन किया है लेकिन उतना ही शालीन जितना तुलसी ने मातृरूपा सीता का किया था (देखिए, पृ. १२८ - १३२) । ऐसा प्रतीत होता है कि भाषा प्रवाह, शब्द चयन, भाव विवेचन सब कुछ सही होने पर भी रस परिपाक अपेक्षित तीव्रता का नहीं हो सका । शान्त रस का प्रवाह प्रबलतम है और सफल भी । 1 अमूर्त का मूर्तीकरण एवं जड़ का मानवीकरण एक उदात्त भावभूमि की अपेक्षा करता है । 'कामायनी' महाकाव्य में मनोदशाओं को मूर्तिमन्त किया है। पूरा का पूरा छायावाद एवं रहस्यवाद मूर्तीकरण एवं मानवीकरण की प्रक्रिया से ओतप्रोत है । महादेवी वर्मा को हर कण में वेदना दिखती है, पन्त को प्रकृति का हर भाग सजग लगता है और नक्षत्रों के पार न जाने कौन 'मौन निमन्त्रण' देता है । महाप्राण निराला ने तो सब तरह की कविता लिखी हैं । 'अनामिका' में 'विजन वन वल्लरी' में अनुराग भरी सो रही कली नायिका का वर्णन करके भाव, भाषा एवं छन्द में क्रान्ति ला दी थी । 'कामायनी' महाकाव्य मनोदशाओं को आधार बनाकर मानव मन को व्याख्यायित करने का सफल प्रयास है। इसके सर्ग 'चिन्ता' से प्रारम्भ होकर 'आनन्द' तक पहुँचते हैं। छायावाद की उत्कृष्ट काव्यकृति है 'कामायनी' ।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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