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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 293 माध्यम से प्रस्तुत की अभिव्यक्ति अन्योक्ति है । हमें प्राचीन शास्त्रीय मापदण्डों से पूछना पड़ेगा कि इस आलोक में 'मूकमाटी' किस श्रेणी में है ? ____ यदि हम 'मूकमाटी' की स्वर्णिम-परिणति की कथा को उपमेय कथा मान लेंगे तो यह प्रश्न उपस्थित होगा कि अभिधा प्रधान यह कथा काव्य की गरिमा से हीन सिद्ध होगी और न ही इसमें शास्त्रोक्त महाकाव्यों के बाह्य लक्षण दिखाई देंगे । यदि इसमें उल्लिखित काया-रूपान्तरण की कथा को प्रमुख मानकर उपमेय कथा की व्यंजना मानेंगे तो भी आध्यात्मिकता के विरुद्ध कथा में दोष प्रतीत होंगे। मेरी दृष्टि में यह एक रूपक-काव्य है, जिसका संक्षिप्त विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है। साहित्य में रूपक शब्द अनेकार्थी है । रूपक अलंकार वह है जिसमें धर्म, गुण आदि की समानता के कारण प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप होता है । दण्डी ने उपमान-उपमेय के भेद का तिरोभाव हो जाने पर रूपक अलंकार माना है (काव्यादर्श, २/१४,६६) । वामन के अनुसार उपमान के साथ उपमेय के गुणों का साम्य होने पर अभेद का आरोप रूपक अलंकार है (काव्यालंकार सूत्रवृत्ति, ४/३-६) । मम्मट के अनुसार उपमेय उपमान का अभेद ही रूपक अलंकार है । अंग्रेजी के एलीगरी का हिन्दी अनुवाद रूपक काव्य है । इसमें कथा दो अर्थों को लेकर चलती है- एक कथा इतिवृत्तात्मकता के कारण सतही और प्रत्यक्ष होती है, तो दूसरी कथा जीवन के असामान्य तत्त्व से सम्बन्धित होने के कारण गूढ़ और अप्रत्यक्ष होती है । अंग्रेजी के प्रसिद्ध समालोचक एबर कॉम्बी के अनुसार : “एलीगरी काव्य महाकाव्य न होकर उसकी-सी विशेषताएँ लेकर लिखा जाता है । पात्र पूर्णतया निर्जीव एवं अमूर्त भावों के प्रतीक होते हैं। उसमें सर्वत्र एक आध्यात्मिक तत्त्व की प्रधानता रहती है" (दि ऐपिक, पृ. ५२) । इस प्रकार 'मूकमाटी' प्रतीक काव्य है । इसमें कुछ पात्रों के अतिरिक्त मानवेतर प्राणी या जड़ पदार्थ पात्र रूप में अवतरित हैं, जो पुरुषों जैसी भाषा में बातचीत, उपदेश करते दिखाई देते हैं और इसका उद्देश्य धार्मिक, नैतिक अथवा आध्यात्मिक तत्त्वों का निरूपण मात्र है । हिन्दी में जायसीकृत पदमावत' तथा प्रसाद की 'कामायनी' इसी प्रकार के काव्य हैं। जैन कवि विद्यासागर ने इस काव्य में समस्याओं को जिस रूप में चित्रित किया है, वह शैली उपदेशात्मक अवश्य है किन्तु इसका शिल्प-विधान चमत्कारिक, आश्चर्यपूर्ण और सामर्थ्य से भरा है। कवि ने मायावी, छद्मरूप धारण करने वाली प्राचीन समस्याओं को वास्तविक रूप में पहचान कर उनका समाधान आचार आधारित या व्यावहारिक रूप में दिया है । इस प्रकार गुरु ही कुम्हार है, सर्जक है, दिशा-निर्देशक है । जड़ जंजाल में बँधे शिष्य की आत्म चेतना ही मूकमाटी है । गुरु तत्त्ववेधक दृष्टि से मिट्टी का चयन कर शिष्य की आत्म चेतना का परिष्कार करता है। वह अन्तश्चक्षओं को उदघाटित कर उसे अमत्र सखाकांक्षी बनाता है। प्रेम उपदेश, तत्त्व-चिन्तन का जल सिंचित कर मिट्टी को आर्द्र, नम्र और आत्म-साक्षात्कारी बनाता है। इन्द्रिय संयम, तप, अपरिग्रह युक्त साधना के चक्र में चढ़ाकर उसे घटाकार देता है तथा परीक्षा की कसौटी हेतु उसे ज्ञानाग्नि में तपाकर ऐसे मंगल घट के रूप में उपस्थित करता है, जिसमें ही प्रभु भक्ति का रसायन सुरक्षित रह सकता है । मूल रूप में यह कथा मनोरम, स्पृहणीय और चमत्कारपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर कथा-प्रवाह में मार्मिक स्थलों की पहचान कर उसका वर्णन आरोह-अवरोहयुक्त है । मूल घटना के साथ लेखक ने जिस काव्यात्मक गरिमा का परिचय दिया है उसमें भाव, रस तथा प्रकृति चित्रण का विशेष योगदान है। प्रकृति चित्रण : कवि ने 'मूकमाटी' में प्राकृतिक-अप्राकृतिक तत्त्वों का निरूपण प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में किया है । जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष जैसे दार्शनिक तत्त्वों का निरूपण, जहाँ एक ओर प्रकृति के स्वरूप निरूपण के रूप में किया है, वहीं दूसरी ओर काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में उल्लिखित आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशात्मिका, रहस्यमयी सत्ता का संकेत तथा उसके कोमल, संश्लिष्ट और कठोर रूपों का भी चित्रांकन किया है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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