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________________ 294 :: मूकमाटी-मीमांसा कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं : ० "लज्जा के बूंघट में/डूबती-सी कुमुदिनी/प्रभाकर के कर-छुवन से बचना चाहती है वह;/अपनी पराग को-/सराग-मुद्रा को पाँखुरियों की ओट देती है।" (पृ. २) 0 "प्रभात कई देखे/किन्तु/आज-जैसा प्रभात/विगत में नहीं मिला और/प्रभात आज का/काली रात्रि की पीठ पर/हलकी लाल स्याही से कुछ लिखता-सा है, कि/यह अन्तिम रात है।" (पृ. १८-१९) "दिनकर ने अपनी अंगना को/दिन-भर के लिए भेजा है उपाश्रम की सेवा में, और वह/आश्रम के अंग-अंग को आँगन को चूमती-सी"/सेवानिरत-धूप"!" (पृ. ७९) "लचकती लतिका की मृदुता/पक्व फलों की मधुता/किधर गईं सब ये ? वह मन्द सुगन्ध पवन का बहाव,/ हलका-सा झोंका वह फल-दल दोलायन कहाँ ?/फूलों की मुस्कान, पल-पल पत्रों की करतल-तालियाँ/श्रुति-मधुर-श्राव्य मधूपजीवी अलि-दल गुंजन कहाँ ?" (पृ. १७९) प्रकृति के कोमल रूप के साथ कवि ने उसके कठोर रूप को भी अंकित किया है : "कभी कराल काला राहू/प्रभा-पुंज भानु को भी पूरा निगलता हुआ दिखा,/कभी-कभार भानु भी वह अनल उगलता हुआ दिखा ।/जिस उगलन में/पेड़-पौधे पर्वत-पाषाण पूरा निखिल पाताल तल तक/पिघलता गलता हुआ दिखा।” (पृ. १८२) . कवि ने प्रकृति के क्रियात्मक रूप का अत्यन्त हृदयावर्जक वर्णन किया है। उदाहरण द्रष्टव्य है : "रति-पति-प्रतिकूला-मतिवाली/पति-मति-अनुकूला गतिवाली इससे पिछली, बिचली बदली ने/पलाश की हँसी-सी साड़ी पहनी गुलाब की आभा फीकी पड़ती जिससे/लाल पगतली वाली लाली-रची पद्मिनी की शोभा सकुचाती है जिससे,/इस बदली की साड़ी की आभा वह जहाँ-जहाँ गई चली/फिसली-फिसली, बदली वहाँ की आभा भी।” (पृ. १९९-२००) रस विवेचन : विभाव, अनुभाव, संचारी-भाव से पुष्ट रस की अभिव्यक्ति कोई भावनावान् कवि ही कर सकता है। साधारणतया कथा प्रधान काव्यों में कथा-प्रवाह के कारण रसों की अभिव्यक्ति स्वतः होती चलती है । जबकि मुक्तक कवियों को इसकी संहति में प्रयास करना पड़ता है। जैन साधक विद्यासागर महाराज तत्त्वद्रष्टा और दार्शनिक हैं । अत: उनके काव्य में दर्शन तत्त्व की प्रमुखता है । परिणामस्वरूप रस तत्त्व उतने प्रांजल रसमग्न करने की सामर्थ्य से अपेक्षाकृत हीन स्थिति में प्रकट हुए हैं। जाहिर है कवि के ऊपर दार्शनिक रूप प्रबल होता दिखाई देता है, फिर भी यत्र-तत्र भाव एवं रसों का सफल सन्निवेश 'मूकमाटी' काव्य में हुआ है । कुम्भकार की कथा में यदि शान्त रस प्रमुख
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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