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________________ 272 :: मूकमाटी-मीमांसा अलंकार काव्य का भूषण है। काव्यांग को समलंकृत कर पाठकों के लिए सहज आकर्षणीय बनाने का कार्य इसके द्वारा सुसम्पादित होता है । अलंकारों का सायास प्रयोग भाव और भाषा को बोझिल बनाता है किन्तु उसका स्वाभाविक प्रवहमान स्वरूप भाषा का सौन्दर्य प्रवर्द्धित कर देता है। 'मूकमाटी' में अलंकारों का निरायास आगमन ऐसा प्रतीत होता है मानों भाव के सामने अलंकार नतमस्तक हो विनम्रता और शालीनता द्वारा अपनी गुरु-गम्भीरता का गुण प्रकट करते हैं। कुछ स्थल ध्यातव्य हैं : 0 “कृष्ण-पक्ष के चन्द्रमा की-सी/दशा है सेठ की शान्त-रस से विरहित कविता-सम/पंछी की चहक से वंचित प्रभात-सम शीतल चन्द्रिका से रहित रात-सम/और/बिन्दी से विकल अबला के भाल-सम।" (पृ. ३५१-३५२) 0 “अत्यल्प तेल रह जाने से/टिमटिमाते दीपक-सम अपने घट में प्राणों को सँजोये/मन्थर गति से चल रहा है सेठ"।" (पृ. ३५०) समासत: यही कहा जा सकता है कि 'मूकमाटी' पिछले दशक की एक सर्वाधिक सशक्त कृति है। यशस्वी महाकवि आचार्य विद्यासागरजी ने इस दीपदान द्वारा हिन्दी काव्य जगत् को केवल आलोकित ही नहीं, विस्तीर्ण भी किया है। आचार्यजी के इस महार्घ अवदान के लिए हिन्दी जगत् उनका सर्वदा ऋणी रहेगा । भाव और कला दोनों दृष्टियों से पूर्णत: समृद्ध इस महाकाव्य और महाकाव्य के प्रणेता यशस्वी सन्त कवि के प्रति मेरी सश्रद्ध प्रणति निवेदित है। भर्तृहरि ने ऐसे ही मनीषियों को ध्यान में रखकर कहा है : "क्षीयन्तेऽखिलभूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ।" आचार्यजी और आचार्यजी की यह त्रिकालाबाधित अमर कृति सदा प्रात:स्मरणीय और कीर्तनीय होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। पृष्ठ १४-१५ अन मौन का भंग होता है 'भाटी की ओर सेयह मार्मिक लयन टै,मा
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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