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मूकमाटी-मीमांसा :: 269 महोत्सव जीवन में लाती है/'महिला' कहलाती वह । ...और पुरुष को रास्ता बताती है/सही-सही गन्तव्य का
'महिला' कहलाती वह !" (पृ. २०२). अबला:
"जो अव यानी/ अवगम'-ज्ञानज्योति लाती है,/तिमिर-तामसता मिटाकर
जीवन को जागृत करती है/ अबला' कहलाती है वह !" (पृ. २०३) कुमारी : “ 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और/'री' यानी देनेवाली..
__ इससे यह भाव निकलता है कि/यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना
____तब तक रहेगी/जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।" (पृ. २०४) स्त्री : “ 'स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं
धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है
सो'स्त्री कहलाती है।" (पृ. २०५) सुता : "'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयाँ/और/'ता' प्रत्यय वह
भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है/यानी,
सुख-सुविधाओं का स्रोत "सो-/'सुता' कहलाती है।" (पृ. २०५) दुहिता : "दो हित जिसमें निहित हों/वह 'दुहिता' कहलाती है।
अपना हित स्वयं ही कर लेती है,/पतित से पतित पति का जीवन भी
हित सहित होता है, जिससे/वह दुहिता कहलाती है।" (पृ. २०५) मातः
"हमें समझना है/'मातृ' शब्द का महत्त्व भी। प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञान/प्रमेय यानी ज्ञेय/और प्रमातृ को ज्ञाता कहते हैं सन्त ।/जानने की शक्ति वह/मातृ-तत्त्व के सिवा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होती। यही कारण है, कि यहाँ कोई पिता-पितामह, पुरुष नहीं है/जो सब की आधारशिला हो,
सब की जननी/मात्र मातृ-तत्त्व है।” (पृ. २०६) सज्जन-दुर्जन की विशेषताओं का समुल्लेख करते हुए आज के मानव का सजीव चित्र 'मूकमाटी' में प्रस्तुत
__ “एक-दूसरे के सुख-दुःख में/परस्पर भाग लेना/सज्जनता की पहचान है,
और/औरों के सुख को देख, जलना/औरों के दुःख को देख, खिलना
दुर्जनता का सही लक्षण है।" (पृ.१६८) 0 “जो परस्पर एक-दूसरे के/खून के प्यासे होते हैं
जिनका दर्शन सुलभ है/आज इस धरती पर !" (पृ. १६९) अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) का पक्ष-पोषण करते हुए कहा गया है कि स्याद्वाद के सिद्धान्त (भी) से ही लोकतन्त्र की रक्षा सम्भव है, एकान्तवाद (ही) के समर्थन से नहीं :