SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 268 :: मूकमाटी-मीमांसा उदारता और सहिष्णुता के दर्शन भी 'मूकमाटी' में होते हैं : उदारता : सहिष्णुता : O दूर, " पूरी तरह जल से परिचित होने पर भी / आत्म - कर्तव्य से चलित नहीं हुई धरती यह । / कृतघ्न के प्रति विघ्न उपस्थित / करना तो विघ्न का विचार तक नहीं किया मन में । / निर्विघ्न जीवन जीने हेतु कितनी उदारता है धरती की यह ! / उद्धार की ही बात सोचती रहती सदा - सर्वदा सबकी ।” (पृ. १९४-१९५) " अपने साथ दुर्व्यवहार होने पर भी / प्रतिकार नहीं करने का संकल्प लिया है धरती ने,/ इसीलिए तो धरती / सर्वं-सहा कहलाती है अपने मत-स्थापना के क्रम में आचार्यजी ने सदुक्तियों के रूप में अनेक ऐसी बातें कहीं हैं जो मानव-जीवन के सम्यक् संधारण और संचालन के लिए अपरिहार्य हैं । बानगी स्वरूप कुछेक स्थल 'मूकमाटी' से उद्धृत हैं : D सर्व-स्वाहा नहीं / और / सर्वं - सहा होना ही सर्वस्व को पाना है जीवन में / सन्तों का पथ यही गाता है।" (पृ. १९० ) " सदय बनो ! / अदय पर दया करो / अभय बनो ! समय पर किया करो अभय की / अमृत-मय वृष्टि सदा सदा सदाशय दृष्टि / रे जिया, समष्टि जिया करो !” (पृ. १४९) "उच्च उच्च ही रहता / नीच नीच ही रहता / ऐसी मेरी धारणा नहीं है, नीच को ऊपर उठाया जा सकता है, / उचितानुचित सम्पर्क से सब में परिवर्तन सम्भव है ।" (पृ. ३५७) समाज व्यक्ति से बनता है। समाज में योगी भोगी, सन्त- तपस्वी, स्त्री-पुरुष सभी तरह के लोग हैं । इनके व्यवहार एवं कर्त्तव्य को निर्दिष्ट करते हुए आचार्यजी ने इनके वर्तमान स्वरूप एवं आदर्श रूप का चित्रांकन किया है। पुरुष और स्त्री पुरुष - प्रकृति के प्रतिरूप हैं । सृष्टि के विकास के लिए इन दोनों में सौहार्द सम्बन्ध और प्रेम सम्बन्ध की स्थापना आवश्यक है। स्त्री की भूमिका को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। 'नारी' शब्द का विश्लेषण करते हुए आचार्यजी ने लिखा है : "स्त्री - जाति की कई विशेषताएँ हैं / जो आदर्श रूप हैं पुरुष के सम्मुख ।.... प्राय: पुरुषों से बाध्य हो कर ही / कुपथ पर चलना पड़ता है स्त्रियों को परन्तु, / कुपथ - सुपथ की परख करने में / प्रतिष्ठा पाई है स्त्री- समाज ने । इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका / शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन- सारी मित्रता / मुफ़्त मिलती रहती इनसे । / यही कारण है कि इनका सार्थक नाम है 'नारी' / यानी - / 'न अरि' नारी.. अथवा / ये आरी नहीं हैं / सोनारी ।" (पृ. २०१ - २०२ ) नारी के विभिन्न नामों की व्याख्या भी अभिनव ढंग से की गई है : महिला : " जो / मह यानी मंगलमय माहौल,
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy