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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 259 न-'मन' हो, तब कहीं/नमन हो 'समण' को/इसलिए मन यही कहता है सदा नम न ! नम न !! नम न!!!" (पृ. ९६-९७) मन पर शासन की कामना करते हुए आचार्यश्री ने लिखा है : "पुरुष का प्रकृति पर नहीं,/चेतन पर/चेतन का करण पर नहीं, अन्तःकरण-मन पर/मन का तन पर नहीं,/करण-गण पर/और करण-गण का पर पर नहीं,/तन पर/नियन्त्रण-शासन हो सदा। किन्तु/तन शासित ही हो/किसी का भी वह शासक-नियन्ता न हो, भोग्य होने से।” (पृ. १२५) आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने एक बहुत ही कीमती शब्द दिया है - 'जिजीविषा', जिस का अर्थ है-जीने की इच्छा । किन्तु प्रश्न उठता है कैसे जीने की इच्छा.? विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूलता पर दृष्टि रखते हुए जीना जिजीविषा कहलाती है । इस शब्द का प्रयोग आचार्यश्री ने 'मूकमाटी' महाकाव्य में दो स्थानों पर किया है। एक स्थान पर महाकाव्य का एक पात्र सेठ चारों ओर से निराशा और चिन्ताओं में घिर जाता है कि उसमें जिजीविषा जाग उठती है: "दल की दमनशील धमकियों से/सेठ के सिवा/परिवार का दिल हिल उठा, उसके दृढ़ संकल्प को/पसीना-सा छूट गया !/उसकी जिजीविषा बलवती हुई और वह/जीवन का अवसान/अकाल में देख कर/आत्म-समर्पण के विषय में सोचने को बाध्य होता, कि/नदी ने कहा तुरन्त,/उतावली मत करो!" (पृ. ४६९) अन्यत्र इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार हुआ है : “जहाँ पर/कुछ पशु, कुछ मृग/कुछ अहिंसक, कुछ हिंसक कुछ मूर्छित, कुछ जागृत/कुछ मृतक, कुछ अर्ध-मृतक अकाल में काल के कवल होने से/सब के मुखों पर/जिजीविषा बिखरी पड़ी है, सब के सब विवश हो/बहाव में बहे जा रहे हैं।” (पृ. ४५०) अपराध शास्त्र भी मनोविज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है । अपराध के सम्बन्ध में महावीर ने कहा है कि समाज में पुण्यहीन मनुष्य अपराध न करता हुआ भी अपराधी हो जाता है और पुण्यवान् जीव अपराध करता हुआ भी निरपराधी के समान हो जाता है। सन्त भी अपराधी से नहीं, उसके अपराध से घृणा करने को कहते हैं । अपराध शास्त्र भी अपराधी को रोगी मान कर उसके उपचार की बात करता है। आचार्य विद्यासागर के अनुसार : "तुम्हारी दृष्टि का अपराध है वह/क्योंकि/परिधि की ओर देखने से चेतन का पतन होता है/और/परम-केन्द्र की ओर देखने से चेतन का जतन होता है।" (पृ. १६२)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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