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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 251 एवं मोह को 'चक्करदार पथ' कह कर कवि ने यह स्पष्ट किया है कि स्वर्ग की ओर जाने वाला मार्ग सँकरा एवं कँटीला है। यदि व्यक्ति इसे समझ लेता है तो सहर्ष संघर्षों व मुसीबतों का सामना समभाव से करता है, क्योंकि यह मार्ग उसे मुक्ति दिलाता है। संख्याओं के माध्यम से कवि ने 'हेय' एवं 'ध्येय' को उजागर किया है, अर्थात् हर पंक्ति एवं शब्द में 'मोक्षदायी' एवं 'पापमय' बिन्दुओं को हमारे समक्ष उद्घाटित कर हमें अपने हर कर्म को आध्यात्मिक दृष्टि से देखने की प्रेरणा दी गई है। ___ जैन दर्शन के अनुरूप मर्मज्ञ कवि ने 'ही' तथा 'भी' बीजाक्षर की तह में प्रवेश कर, उनके दर्शन की व्याख्या कर, पाश्चात्य एवं भारतीय संस्कृति में निहित दृष्टिकोणों को उजागर कर पाश्चात्य जगत् की सामन्ती भावना को लोक के आत्म कल्याण के प्रतिकूल बतलाया है। भारतीय संस्कृति, जो कि मानव समाज के भाग्य विधाता' के रूप में पेश की गई है, वह आज के भारत के ढाँचे को देखते हुए उस पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न लग जाता है । कविश्री ने भी' को लोकतन्त्र की रीढ़ की उपाधि दी है । आज देश में छाए आतंक को देखते हुए क्या यह कहना उचित है कि 'भी' से 'स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार हो रहे हैं ? आज 'भी' राष्ट्र के व्यक्ति स्वयं को कितना असुरक्षित पा रहे हैं, अत: आज 'भी' संस्कृति एवं सभ्यता को अतीत की समृद्धि, आध्यात्मिकता तथा गौरव गाथा पर गर्व करना त्याग कर, वर्तमान परिस्थिति एवं परिवेश की चुनौतियों के समक्ष उसे साकार कर 'भी' के पावन एवं विश्व-बन्धुत्व के अस्तित्व को जीवित रख, सही अर्थों में 'ही' का मार्गदर्शन कर अतीत को जीने का प्रयास करें। अन्यथा, हम 'ही' के ही समान नित्य दूसरों को कहें कि 'तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो' अर्थात् जैन दर्शन के आदर्श एवं समभाव के दर्शन ‘अनेकान्त' तथा 'स्याद्वाद' को 'ही' तक पहुँचा सकें । 'समभाव' से बढ़कर और कौन-सा दर्शन हो सकता है ? आवश्यकता उसे जीने की है। इस खण्ड में अध्यात्मवादी कवि ने हमारा ध्यान उन मानवीय गुणों एवं धर्म की ओर आकर्षित किया है, जो आज के युग में कायरों एवं पौरुषहीनों की सुरक्षा की ढाल माने जाते हैं। आज छली, धूर्त एवं मायावी व्यक्ति ही विश्व में फलते-फूलते एवं सब पर अपना वर्चस्व जमाए रखने में सफल होते हैं। भले ही समाज का धार्मिक वर्ग ऐसे लोगों की आलोचना एवं भर्त्सना करता है, किन्तु वह भी कायरतावश खुलकर एवं समय पर अपनी ज़बान पर लगाम लगा लेते हैं ताकि वे किसी सार्वजनिक परेशानी में न उलझ जाएँ। समाज को इस प्रकार की कायरता से ऊपर उठाकर सत्य के मार्ग पर चलने हेतु प्राणों की बाज़ी लगाने में ही इस लघु वर्ग को अपनी आवाज़ बुलन्द करनी चाहिए, जैसा कि हमारे श्रद्धेय भक्त कवि ने अपनी लेखनी द्वारा किया है। इस खण्ड में कविश्री ने संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्द भेदों का जो विश्लेषण किया वह कवि के अध्यात्म चिन्तन-मनन का ही सफल परिणाम है, जिससे साधना का सुगम व सर्वमान्य स्वरूप समाज को प्रदान किया है । इस खण्ड के अन्त में कवि ने उस अकाट्य सत्य को हमारे सामने रखा है, जिसे किसी भी स्थिति में टाला नहीं जा सकता है और जिस पर ध्यान देना प्रत्येक व्यक्ति का परम - पावन कर्तव्य है, जिसकी अवहेलना करना, स्वयं को सर्वनाश के कगार पर ले जाना है । यह अकाट्य सत्य है कि हम सब इस विश्व रूपी विशाल नौका में यात्री के रूप में सफ़र पर हैं। सफल यात्रा हेतु सभी प्रकार के साधनों को पहले से ही जुटा लेना पड़ता है । ठीक उसी प्रकार मानव को अपनी आध्यात्मिक मंज़िल तक पहुँचने में उन साधनों को जुटाना पड़ता है, जिन्हें न कोई चोर चुरा सकता है, न कोई डकैत लूट सकता और न ही कोई सेंध लगाकर ले जा सकता है । वह साधन है-'मानव को मानवता से प्यार'। बस इसी लघु वाक्य में मानव-मुक्ति का रहस्य छिपा है, जिसे कवि ने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम एवं विविध प्रतीकों द्वारा अपनी आध्यात्मिक रचना 'मूकमाटी' के इस खण्ड में व्यक्त किया है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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