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________________ 'मूकमाटी': एक अद्वितीय रचना डॉ.(मिस) पी. सी. साल्वे आचार्य श्री विद्यासागर मुनिजी द्वारा रचित 'मूकमाटी' महाकाव्य का मैने समस्त दृष्टिकोण से अध्ययन किया है। साथ ही मेरे लिए यह एक सुखद अनुभव है कि 'मूकमाटी' जैसे आध्यात्मिक महाकाव्य की समीक्षा करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है। कहना न होगा कि 'मूकमाटी' महाकाव्य का सृजन स्वयं में एक ऐसी कृति है, जो पूर्णत: दार्शनिकता की पक्षधर है । आज का युग ऐसा है जो अनायास ही भौतिकता की विभीषिका का ताण्डव नृत्य मानव समाज में प्रसारित करने में होड़ लगा रहा है । यह महाकाव्य भौतिक लिप्सा में लिप्त समाज के लिए एक स्वच्छ, सरल तथा प्राकृतिक निदान प्रस्तुत करता है। केवल आवश्यकता है इसे एकाग्रचित्त से अध्ययन करने की। मुनिवर विद्यासागरजी ने अपनी कृति को चार खण्डों में विभाजित किया है । प्रत्येक खण्ड मानव जीवन के समग्र पहलुओं पर प्रकाश डालता है । महाकाव्य जैन दर्शन पर आधारित होते हुए भी विश्व के प्रत्येक जन के लिए साधना के माध्यम से वर्तमान जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करता है। जीवन की सार्थकता भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों जीवन को सुखद बनाने के प्रयास में है। यह तब ही सम्भव होता है जब हम सामान्य जीवन को असामान्य रूप से जीते हैं और यही तथ्य 'मूकमाटी' हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। आज के युग, सभ्यता एवं मूल्यों की मांग है कि व्यक्ति को महान् कहलाने और बनने के लिए असाधारण प्रतिभा की आवश्यकता है, विलक्षण बुद्धि एवं कुटिल चतुराई एक अनिवार्य शर्त है । 'मूकमाटी' जैसे आध्यात्मिक महाकाव्य में इसके लिए कोई स्थान नहीं है। इस काव्य के पात्रों को ही लीजिए-क्या हमने कभी अपनी बुद्धि को निर्जीव पदार्थों एवं उपादानों में आध्यात्मिकता के बीजों को खोजने का प्रयास किया है ? हम तो हमारे जैसे मानव को भी अक्सर पदार्थ के रूप में देखते हैं। लघु व पतित कहे जाने वाले ही अनेक बार हमें दर्शन का पाठ पढ़ा जाते हैं। जीवन की प्रत्येक स्थिति में समभाव बनाए रखना यही साधना का पथ है, यही सफल एवं सिद्ध जीवन की कुंजी है। महाकाव्य के स्रष्टा ने विभिन्न मूक पात्रों के माध्यम से उक्त तथ्यों को समाज तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है। कवि ने उन पात्रों का उपयोग किया है, जिनकी ओर समाज का ध्यान कभी नहीं जाता । वस्तु को मूल्यहीन बतलाने के लिए उसकी तुलना हम माटी से करते हैं। वस्तु के मूल्यों में जब एकदम गिरावट आती है, तो हम कहते हैं मिट्टी के भाव बिक रही है । अतिभौतिकवादी का दृष्टिकोण ही ऐसा बन जाता है । महाराजश्री ने इसी मिट्टी को चरणों तले से उठाकर हिमगिरि के धवल-श्वेत निर्विकार शिखर तक पहुँचा कर विश्व मंगलकारी घोषित कर दिया है। ऐसी दृष्टि केवल एक सच्चे समाजसेवी, तपस्वी में ही पाई जाती है। कवि ने प्रत्येक मूक पात्र एवं काव्यमयी पंक्तियों के माध्यम से तुच्छ समझी जाने वाली वस्तु में आध्यात्मिकता के दर्शन कराए हैं। शब्दों एवं वर्गों में निहित अर्थों का जो सटीक एवं भावात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, उससे कवि के गहन आध्यात्मिक चिन्तन का परिचय मिलता है । इस विश्लेषण से पाठक स्वयं अनुभव करने लगता है कि कवि के द्वारा प्रयुक्त हर एक शब्द आध्यात्मिक महत्त्व रखता है। शब्दों को किसी भी रूप में क्यों न रखें, वे सभी दर्शन की शिक्षा देते हैं। ___ भागदौड़ एवं रंगरेलियों के इस युग में किसके पास इतना समय है कि वे शब्दों की शल्यक्रिया कर उनमें आध्यात्मिक एवं साधना पक्ष के मूल्यों को खोजें ? किन्तु इसके लिए समाज में एक विशेष वर्ग है जो इस शोध कार्य में निरन्तर लगा रहता है । वह वर्ग साधु-सन्त, त्यागी-तपस्वी तथा ऋषि-मुनियों का है और इसका जीवित स्वरूप
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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