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________________ 'मूकमाटी' : हिन्दी के आधुनिक महाकाव्यों को नया मोड़ और प्रतीकार्थ देने वाला महाकाव्य डॉ. नरेन्द्र भानावत आचार्य श्री विद्यासागर प्रबुद्ध चिन्तक, अध्यात्मप्रवण साधक, कवि और ओजस्वी वक्ता हैं। 'मूकमाटी' धर्मदर्शन एवं अध्यात्म को आधुनिक भाव-भाषा-बोध व मुक्त छन्द में व्याख्यायित करने वाला रूपकात्मक महाकाव्य है। माटी जैसी तुच्छ, नगण्य और उपेक्षित वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाकर प्रज्ञाशील कवि ने अपनी मनोरम कल्पना से जड़ता को चिन्मयता से अभिमण्डित किया है । सूक्ष्म कथा के धागे से सम्पूर्ण मानवीय चेतना, आध्यात्मिक ऊर्जा और जीवन के चरम लक्ष्य को सूक्ष्म संकेतों, प्रतीकों और नानाविध अर्थ छवियों से कौशल पूर्वक बाँधा है। यह महाकाव्य चार खण्डों में विभक्त है, जिनके शीर्षक बड़े व्यंजनापूर्ण हैं । प्रथम खण्ड 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ' में माटी की शोधन-प्रक्रिया का, द्वितीय खण्ड 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं में पारम्परिक रसों की मौलिक व्याख्या के साथ माटी की चेतना की महत्ता का, तृतीय खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' में माटी का कुम्भ रूप में आकार ग्रहण करने के आलोड़न-विलोड़न का और चतुर्थ खण्ड अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' में अवा में तप कर मंगल घट बनने, साधु के पाद-प्रक्षालन की पात्रता अर्जित करने व स्वर्ण कलश की तुलना में अपने वैशिष्ट्य को उभारने की गाथा वर्णित है। प्रकारान्तर से इस काव्य में साधना की वह प्रक्रिया वर्णित है, जिसमें कर्मबद्ध आत्मा संवर-निर्जरा के पथ से गुज़रती हुई शुद्ध, बुद्ध, मुक्त बनती है । माटी, उसका शिल्पी कुम्भकार, निर्ग्रन्थ साधु, उपासक नगर सेठ, आतंकवाद, उसके ख़िलाफ़ लड़ने वाले आत्मिक मूल्य क्षमा, प्रेम, करुणा, दया, परोपकार, प्रकृति और पुरुष के सम्बन्ध आदि का ऐसा मनोरम, मौलिक एवं तात्त्विक प्रतीकात्मक संगुम्फन किया गया है इस कृति में कि वह मूक होकर भी सम्पूर्ण मानवीय चेतना को मुखरित करने में सक्षम है। शब्द चयन में कवि सजग और दक्ष है। शब्दों की वाक् व्युत्पत्ति की पकड़ अर्थ में नया चमत्कार भर देती है। कुम्भ, गदहा, रस्सी, धरती, वसुधा, स्त्री, कम्बल, संसार जैसे शब्दों की परतों को खोलकर कवि नया अर्थ देता है, जो आरोपित नहीं, स्वत: स्फूर्त लगता है। विलोम गति से शब्दों के अर्थ को पकड़ कर कवि पाठकों को अभिभूत-चमत्कृत कर देता है। लोकभूमि से उठा हुआ यह काव्य मूकमाटी में ऊर्ध्वगामी चेतना के चन्दन की सुवास बिखेरता चलता है। हिन्दी के आधुनिक महाकाव्यों की परम्परा को नया मोड़ और प्रतीकार्थ देता है यह महाकाव्य । [सम्पादक- 'जिन वाणी' (मासिक), जयपुर-राजस्थान, मार्च, १९९०] ४७१. उसे नूतन जाल-बन्धन-:-- -...काल के गाल में कवलितरोगेटम
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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