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मूकमाटी-मीमांसा :: 237
'माटी' जैसी पतित, दलित, तुच्छ, हेय, नाचीज़ को मंगल कलश तक के रूप में पहुँचाना सदाशयता और सद्भावना की उत्तुंग ऊँचाई की माप है। ग्रन्थ, जिसकी मूल धारणा पतित-पावन की है, नि:सन्देह अनुकरणीय और स्तुत्य है । काव्य का स्तुतीकरण प्रकारान्तर से इसके प्रणेता आचार्य तपस्वी सन्त कवि विद्यासागर का स्तुतीकरण है, जो अपनी सदाशयता और आचरण से यश और श्रेय के प्रमाणित अधिकारी हैं।
___ 'मूकमाटी' महाकाव्य जो अनगिनत पूत भावनाओं का संग्रह एवं भण्डार है, कुछ बिन्दुओं को छोड़ हिन्दू मात्र को चाहे, वह किसी मत का हो, उसे अपनी ओर आकर्षित करने और विचारमग्न तथा भावमग्न कर देने की स्थिति तक ला देने में पूर्णतया सक्षम है । ये गुण काव्य की बहुमुखी सफलता के द्योतक हैं।
'मूकमाटी': दार्शनिक विचार एवं तीव्र अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति
___डॉ. आर.सी. शुक्ल आचार्य श्री विद्यासागरजी के काव्य ग्रन्थ का अध्ययन कर चुका हूँ। इसकी भाषा जितनी सरल है, भाव एवं विचार उतने ही गहन और गम्भीर हैं। जैन दर्शन के मूल तत्त्वों को पूर्णत: आत्मसात् कर अपनी समस्त अनुभूतियों एवं चिन्तन को उनसे एकाकार कर जीवन जीने वाले आचार्यश्री के ग्रन्थ की तुलना केवल दाँते की 'डिवाइन कॉमेडी' से ही की जा सकती है । संसार में ऐसे महाकाव्य बहुत कम हैं जिनमें दार्शनिक विचारों को सहज और तीव्र अनुभूतियों के रूप में व्यक्त करने हेतु सुचित्रित एवं सर्वग्राह्य रूपक का रूप दिया गया है। काव्य शैली तो नितान्त मौलिक ही है । स्पष्ट है कि इस रचना को समझने एवं विश्लेषण करने के लिए अतिविशिष्ट प्रतिभा अपेक्षित है।
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पर के प्रति...भगवान से प्रार्थना करता है कि