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222 :: मूकमाटी-मीमांसा
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प्रकृति चित्रण को कहना क्या! अपनी कोमलकान्त पदावली के लिए प्रसिद्ध प्रकृति के चतुर चितेरे कविवर सुमित्रानन्दन पन्त भी मात खा जा रहे हैं इस सन्त कवि की अद्भुत मेधा के समक्ष प्रस्तुत है प्रकृति चित्रण, शिल्पी के कोमल स्पर्श का अनुभव 'माटी' द्वारा :
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"आस्था के बिना आचरण में / आनन्द आता नहीं, आ सकता नहीं । फिर,/ आस्थावाली सक्रियता ही/निष्ठा कहलाती है ।" (पृ. १२० ) 'आँखों की पकड़ में आशा आ सकती है / परन्तु
आस्था का दर्शन आस्था से ही सम्भव है / न आँखों से, न आशा से ।” (पृ. १२१ )
“ज्ञान का पदार्थ की ओर/ ढुलक जाना ही / परम आर्त पीड़ा है, /और
ज्ञान में पदार्थों का/झलक आना ही - / परमार्थ क्रीड़ा है।” (पृ. १२४)
" पुरुष की पिटाई प्रकृति ने की, / प्रकारान्तर से चेतन भी
उसकी चपेट में आया । /गुणी के ऊपर चोट करने पर
गुणों पर प्रभाव पड़ता ही है । " (पृ. १२५ )
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"तन शासित ही हो / किसी का भी वह शासक - नियन्ता न हो, / भोग्य होने से ! और/सर्वे-सर्वा शासक हो पुरुष / गुणों का समूह गुणी, संवेदक भोक्ता होने से !" (पृ. १२५ - १२६)
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'मखमल मार्दव का मान / मरमिटा-सा लगा । / आम्र-मंजुल - मंजरी कोमलतम कोंपलों की मसृणता/भूल चुकी अपनी अस्मिता यहाँ पर, अपने उपहास को सहन नहीं करती/ लज्जा के घूँघट में छुपी जा रही है, / और कुछ-कुछ कोपवती हो आई है, / अन्यथा / उसकी बाहरी - पतली त्वचा हलकी रक्तरंजिता लाल क्यों है ?/ माटी की मृदुता, मोम की माँ चुप रह न सकी ।" (पृ. १२७ )
" लचकती लतिका की मृदुता / पक्व फलों की मधुता / किधर गईं सब ये ? वह मन्द सुगन्ध पवन का बहाव, / हलका-सा झोंका वह
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फल-दल दोलायन कहाँ ? / फूलों की मुस्कान,
पल-पल पत्रों की करतल - तालियाँ / श्रुति- मधुर श्राव्य मधूपजीवी
अलि-दल गुंजन कहाँ ?/ शीत-लता की छुवन छुपी पीत-लता की पलित छवि भी / पल भर भी पली नहीं जली, चली गई कहाँ, पता न चला । " (पृ. १७९ )
अनुप्रास की छटा समूचे काव्य पर लहरा रही है। कहावत का एक नमूना :
" एक कहावत कह डाली / कहकहाहट के साथ'आधा भोजन कीजिए / दुगुणा पानी पीव । तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी / वर्ष सवा सौ जीव' !'' (पृ. १३३)