________________
भारतीय संस्कृति एवं साहित्य का विश्वकोश : 'मूकमाटी' महाकाव्य
डॉ. उमेश प्रसाद सिंह 'शास्त्री'
'मूकमाटी' महाकाव्य को आद्योपान्त पढ़ने के बाद समीक्षात्मक दृष्टि से कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इसके चार खण्ड हैं- प्रथम खण्ड 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ; द्वितीय खण्ड 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं; तृतीय खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप- प्रक्षालन' एवं चतुर्थ खण्ड 'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख ।' माटी जैसी अकिंचन, पददलित और तुच्छ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त विलक्षण है। 'मूकमाटी' के 'प्रस्तवन' लेखक श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन के अनुसार : "माटी की तुच्छता में चरम भव्यता के दर्शन करके उसकी विशुद्धता के उपक्रम
मुक्ति की मंगल यात्रा के रूपक में ढालना कविता को अध्यात्म के साथ अ-भेद की स्थिति में पहुँचाना है।" इस परिप्रेक्ष्य में यह कहना भी समीचीन प्रतीत होता है : " 'मूकमाटी' मात्र कवि-कर्म नहीं है, यह एक दार्शनिक सन्त की आत्मा का संगीत है ।" आचार्यश्री ने तपः- साधना से अर्जित जीवन दर्शन के अनुभूतिपरक सन्देश को रचा-पचा कर सबके हृदय में सम्प्रेषित कर देने का सफल प्रयास किया है।
'मूकमाटी' को महाकाव्य की दृष्टि से देखने पर ऐसा कहना उचित है कि यह एक काव्य है, महाकाव्य नहीं । महाकाव्य के जो लक्षण शास्त्रों में निर्धारित हैं, वे सभी लक्षण इसमें पूर्णरूपेण घटित नहीं होते । महाकाव्य के निर्धारित लक्षण के अनुसार इसमें आठ सर्ग नहीं हैं। इसमें कुल चार खण्ड ही विन्यस्त हैं। इसमें एक आद्योपान्त चलने वाली कथा नहीं है। इसमें शृंगार, वीर या करुणा से इतर रस का परिपाक हुआ है। इसके नायक या नायिका धीरोदात्त चरित्र के नहीं हैं, इत्यादि । हाँ, इसे खण्डकाव्य की श्रेणी में अवश्य परिगणित किया जा सकता है। मेघदूत भी एक खण्डकाव्य है जिसमें कविपुंगव कालिदास ने न केवल अपनी काव्य प्रतिभा का अपितु अपनी सारी अनुभूतियों एवं प्रवृत्तियों का कलात्मक ढंग से सुन्दर संयोजन किया है और एक कालजयी कृति की रचना कर दी है। मेघदूत को केवल एक काव्य कहना मात्र उसके एक पक्ष को देखना है । इसे तो विश्वकोश कहना चाहिए क्योंकि इसमें विविध शास्त्रपरक, यथा- - भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र, पदार्थ विज्ञान, जीवन विज्ञान एवं सबसे बढ़कर नीतिज्ञान का चतुर स्थापन हुआ है । यही कारण है कि किसी प्रौढ़ समीक्षक ने कहा था- 'माघे मेघे गतं वय:' अर्थात् संस्कृत के प्रसिद्ध महाकवि माघ एवं प्रसिद्ध काव्यकृति मेघदूत को ठीक से पढ़ने में मनुष्य की उम्र ही बीत जा सकती है। यह इसकी अगाधता, आध्यात्मिकता एवं शास्त्रज्ञता काही संकेत है । अगर समकालीन काव्य 'उर्वशी' को ध्यानगत किया जाए तो 'उर्वशी' में दिनकरजी ने भारतीय उपाख्यान के आधार पर 'उर्वशी' के माध्यम से भारतीय संस्कृति को उजागर किया है । कविश्रेष्ठ दिनकर ने मानव समाज को कुछ सन्देश प्रेषित किए हैं। इस सन्दर्भ में 'उर्वशी' ' मूकमाटी' से साम्य रखती है। जिस रूप से 'उर्वशी' को महाकाव्य की श्रेणी में रखा जाता है, उस रूप से 'मूकमाटी' को भी महाकाव्य के नाम से अभिहित किया जा सकता
है।
जो हो, महाकवि आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा रचित 'मूकमाटी' एक कालजयी रचना है जिसमें प्रतीक रूप में आध्यात्मिक, शाश्वत सन्देश भरे पड़े हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी एक विश्वकोश ही है जिसमें अनेक शास्त्रों एवं उपाख्यानों के सन्देश संश्लिष्ट होकर पिरोए गए हैं। यह महाकवि विद्यासागरजी की उपलब्धि है एवं सारस्वत सफलता भी । आलोच्य पुस्तक 'मूकमाटी' में विन्यस्त 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' शाश्वत प्रकृति का उपशीर्षक है जिसके अधोलिखित अंश उल्लेखनीय हैं :
“शिष्टों का उत्पादन - पालन हो / दुष्टों का उत्पातन - गालन हो,
ם