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________________ 182 :: मूकमाटी-मीमांसा "समुचित मन्थन हो/नवनीत का लाभ अवश्य होता है। ... संघर्षमय जीवन का उपसंहार/...टालने में नहीं/सती-सन्तों की आज्ञा पालने में ही/'पूत का लक्षण पालने में"/यह सूक्ति चरितार्थ होती है, बेटा!" (पृ. १४) व्यक्ति या समाज के बदलाव या निर्माण की प्रक्रिया में उत्प्रेरक, उद्बोधक शक्तियों का बड़ा हाथ होता है। धर्म, कर्म, ईश्वर, गुरु, दीपक, चन्द्र एवं सूर्य आदि ऐसे ही तत्त्व हैं। इनसे मिली प्रेरणाओं से जीवन का निर्माण होता है। भाग्य बनता है । ये तत्त्व कुम्भकार की भूमिका निभाते हैं, क्योंकि कवि के शब्दों में : “यहाँ पर जो/भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है। ...शिल्पी का नाम/कुम्भकार हुआ है।” (पृ. २८) सन्त-कवि अपने काव्य 'मूकमाटी' में गरीबों के दुःख-दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील है : “अमीरों की नहीं/गरीबों की बात है;/कोठी की नहीं/कुटिया की बात है जो वर्षा-काल में/योड़ी-सी वर्षा में/टप-टप करती है/और उस टपकाव से/धरती में छेद पड़ते हैं,/फिर "तो""/इस जीवन-भर रोना ही रोना हुआ है/दीन-हीन इन आँखों से/धाराप्रवाह"/अश्रु-धारा बह इन गालों पर पड़ी है।" (पृ. ३२-३३) जीवन में उदात्त भावनाओं का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । उनसे जीवन सार्थक बनता है। वह मोक्ष का द्वार खोलता है। कवि के शब्दों में : "वासना का विलास/मोह है,/दया का विकास/मोक्ष हैएक जीवन को बुरी तरह/जलाती है."/भयंकर है, अंगार है ! एक जीवन को पूरी तरह/जिलाती है"/शुभंकर है, शृंगार है।" (पृ. ३८) और : "करुणा की कर्णिका से/अविरल झरती है/समता की सौरभ-सुगन्ध।” (पृ. ३९) कवि के शिल्प की कसौटी है- मृदु माटी से- छोटी-छोटी जातियों से प्रेम करना, उन्हें ऊँचा उठाना : "मृदु माटी से/लघु जाति से/मेरा यह शिल्प/निखरता है/और खर-काठी से/गुरु जाति से/वह अविलम्ब/बिखरता है।” (पृ. ४५) संयम और तपस्या धर्म की सीढ़ियाँ हैं। इनके बिना कोई भी उपलब्धि सम्भव नहीं। कवि इनकी महत्ता को खूब पहचानता है। मिट्टी अपनी संयमित अवस्थिति से ही सर्वसहा बनकर दूसरों को भी उसी राह चलने के लिए प्रेरित करती है। उसी के शब्दों में : "संयम की राह चलो/राही बनना ही तो/हीरा बनना है, स्वयं राही शब्द ही/विलोम-रूप से कह रहा है-/रा"ही"ही"रा
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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