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________________ मूकमाटी-मीमांसा सफल प्रयत्न किया है । कृष्ण सम्बन्धी प्रेम वर्णन को वासना मुक्त करके 'द्वापर' में चित्रित किया है। 'मूकमाटी' में भी कृष्ण के आए प्रसंगों को विद्यासागरी प्रतिभा ने वासना मुक्त कर्मयोगी के रूप में प्रतिष्ठित किया है। 'कामायनी' छायावादी धारा की सुन्दरतम रचना है। 'प्रसाद' के कवि - जीवन के अणु - अणु के मन्थन से निकाली गई है । छायावादी कवि की आँखें विश्व के कण-कण में सौन्दर्य की व्याप्ति के दर्शन करती हैं । उसकी कलम पौराणिक तथ्य-कथ्य की सहचरी होती है। वह जड़ यान्त्रिकता की छाया में घिर आई प्रकृति-शक्ति को सहानुभूति की आँखों से देखती है। उसके विरोध में आवाज़ उठाती है । यान्त्रिकता के तेज - तुन्द रुख को बदलने के लिए व्याकुल हो जाती है। उसे प्रकृति की गोद चेतना से पूर्ण दिखाई पड़ती है। उसे उसके हाव-भाव में सर्वात्मवाद और सर्वचेतनावाद प्रकाशित डोलती आभा दिखाई पड़ती है। छायावाद झण्डा ऊँचा करके नारी की गरिमा के गीत गाता है । वह काव्यकथा के नायकत्व का ध्वज-दण्ड नारी के हाथों में रखता है। वह मन की गहराई में छिपी वृत्तियों का स्पष्ट विश्लेषणचित्र उपस्थित करता है । वह प्रकृति को अन्तर्मुखी देखता है। वह प्रतीक-विधान का सम्बल लेकर आन्तरिक साम्य की ओर अधिक प्रलुब्ध होता है । अपनी कोमल कल्पनाओं को कोमल पद- वितान के नीचे रखता और सजाता है। छायावाद की उक्त आविष्कृत विशिष्टताओं के सुन्दर दृष्टान्त 'कामायनी' के पृष्ठ-पल्लवों पर शृंगार करते दिखाई पड़ते हैं । 'मूकमाटी' में इन विशेषताओं की लहरें कथा के मूल प्रवाह पर उठती - गिरती कहीं-कहीं दिखाई पड़ती हैं। कुछ संकेतों का संकेत करना यहाँ समीचीन जान पड़ता है। एक बात अवश्य ही इसे छायावादी धारा से अलग करती है। वह है कवि का 'अंगातीत' साधना - 'संगीत' : सौन्दर्य-व्याप्ति: ם पौराणिक तथ्य - कथ्य : O “सीमातीत शून्य में / नीलिमा बिछाई, और इधर नीचे / निरी नीरवता छाई ।” (पृ. १) D " लज्जा के घूँघट में/ डूबती-सी कुमुदिनी / प्रभाकर के कर- छुवन से बचना चाहती है वह;/ अपनी पराग को - / सराग- मुद्रा कोपाँखुरियों की ओट देती है । " (पृ. २) "रावण था 'ही' का उपासक / राम के भीतर 'भी' बैठा था । यही कारण कि/राम उपास्य हुए, हैं, रहेंगे आगे भी।” (पृ. १७३) "प्रभु से प्रार्थना है, कि / 'ही' से हीन हो जगत् यह अभी हो या कभी भी हो / 'भी' से भेंट सभी की हो ।” (पृ. १७३) :: 151 “ आज इन्द्र का पुरुषार्थ / सीमा छू रहा है, ... छिदे जा रहे, भिदे जा रहे, / विद्रूप - विदीर्ण हो रहे हैं बादल - दलों के बदन सब । .. थोड़े से ही शेष हैं जल - कण । / ... क्रोध से भरी बिजली कौंधने लगी ... तभी इन्द्र ने आवेश में आ कर / अमोघ अस्त्र वज्र निकाल कर बादलों पर फेंक दिया ।/ वज्राघात से आहत हो मेघों के मुख से 'आह' ध्वनि निकली, / जिसे सुनते ही सौर-मण्डल बहरा हो गया । / ... सागर से पुन: सूचना मिलती है
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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