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124 :: मूकमाटी-मीमांसा
'ला' यानी लाना-देता है/कोई भी कला हो
कला मात्र से जीवन में/सुख-शान्ति-सम्पन्नता आती है।" (पृ. ३९६) (३) हिंसा-अहिंसा, प्रशंसा-नृशंसा, धीरता और कायरता क्या है ? :
"हिंसा की हिंसा करना ही/अहिंसा की पूजा है "प्रशंसा,/और हिंसक की हिंसा या पूजा/नियम से/अहिंसा की हत्या है "नृशंसा । धी-रता ही वृत्ति वह/धरती की धीरता है/और
काय-रता ही वृत्ति वह/जलधि की कायरता है।" (पृ. २३३) (४) सत् का स्वरूप :
" 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-युक्तं सत्' ...व्यावहारिक भाषा में/सूत्र का भावानुवाद प्रस्तुत है : आना, जाना, लगा हुआ है/आना यानी जनन-उत्पाद है जाना यानी मरण-व्यय है/लगा हुआ है यानी स्थिर-धौव्य है/और
है यानी चिर-सत्/यही सत्य है यही तथ्य !" (पृ. १८५) (५) आत्मा और जड़ कभी एक नहीं होते :
"अरे कंकरो!/माटी से मिलन तो हुआ/पर माटी में मिले नहीं तुम!/माटी से छुवन तो हुआ/पर माटी में घुले नहीं तुम !/इतना ही नहीं,/चलती चक्की में डालकर तुम्हें पीसने पर भी/अपने गुण-धर्म/भूलते नहीं तुम ! भले ही/चूरण बनते, रेतिल; /माटी नहीं बनते तुम!" (पृ. ४९)
पृ. ४३४
Kanti
-अपहों के मुखसे
पदों की, पदवालोंकी -परिणति-पद्धति सुनकर “परिवर स्तमित हुआ।