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________________ 120 :: मूकमाटी-मीमांसा "नील नीर की झील / नाली - नदियाँ ये अनन्त - सलिला भी / अन्त:सलिला हुई हैं, ... जल से विहीन हो / दीनता का अनुभव करती है नदी ।" (पृ. १७८ ) इस विचारशीलता में भी कविता अन्त:सलिला की भाँति प्रवहमान है । यही कवि की विशेषता है । काव्य-कौतुक यद्यपि काव्य चमत्कार और कुतूहल का जनक आज के युग में नहीं रहा, न ही उसकी कोई प्रयोजनीयता है, फिर भी इनसे विशाल ग्रन्थ काव्य-कौतुक जन-रंजन करता है, तो कवि उसके लिए दोषी नहीं। यह प्रयास प्रशंसनीय है । विशेषतः शब्द- -कौतुक दर्शनीय है। 0 "नदीदी न जल से विहीन... ।” (पृ. १७८) मृदंग के स्वर में कविता मृदंगमयी हो उठती है : धा... 'धाधिन् धिन्धा.. "धिन् धिन्धा" वेतन - भिन्ना, चेतन-भिन्ना, ता’‘“तिन’‘“तिन’‘“ता""" ता'' तिन'-" तिन ... ता... का”—“तन—“चिन्ता, का तन" चिन्ता ?” (पृ. ३०६ ) हम इस तरह के शब्द - विन्यास को उपेक्षित नहीं कर सकते, क्योंकि महाकवि निराला ने भी इस तरह की कविताएँ लिखी हैं : " ताक कमसिन वारि कमसिन वारिताक वारि कमसिन ताक...।" अद्भुत नाटकीयता, अतिशयता और प्रसंगों के पूर्वापर सम्बन्धों का बिखराव यद्यपि किसी भी समीक्षक के लिए असुविधाजनक हो सकते हैं, किन्तु काव्य को प्रासंगिक बनाने की दृष्टि से इनकी परिकल्पना साहसिक, सार्थक और आधुनिक परिदृश्य के अनुकूल है। वह महाकाव्य, एक लम्बी, खुरदरी किन्तु विचार - वेष्टित कविता-संगुम्फन है और एक आलोचक ने ठीक ही कहा है कि 'मूकमाटी' में कविता का अन्तरंग स्वरूप प्रतिबिम्बित है । साहित्य के आधारभूत सिद्धान्तों का दिग्दर्शन भी इसमें है । तुलसीदास ने लिखा है : " कीरति भणिति भूति भल सोई । सुरसरि सम सब कर हित होई ।" उसी प्रकार साहित्य की उपादेयता / प्रयोजनीयता भी वही होनी चाहिए जो गंगा के समान सबको शीतल और पवित्र करे, अन्यथा
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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