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106 :: मूकमाटी-मीमांसा
“२x२-१८, १+८=९ ९४३२७, २+७=९
९x४३६, ३+६=९।" (पृ.१६७) कुम्भ के कण्ठ पर ६३ की संख्या अंकित है । ६३ प्रतीक है सज्जनता का अर्थात् एक दूसरे के सुख-दुःख में भाग लेना । इसका विलोम ३६ दुर्जनता का प्रतीक है।
संगीत और विभिन्न वाद्यों से उठनेवाली ध्वनियों की जानकारी आचार्यश्री को है। मृदंग हाथ की गदिया और मध्यमा के संघर्ष से बजाया जाता है। उससे निकलने वाली ध्वनि से महाकवि ने अनासक्ति का भाव व्यंजित कर दिया
"धाधिन धिन्धा "/धा धिन धिन्धा .. वेतन-भिन्ना चेतन-भिन्ना, तातिन तिन "ता":/ता तिन तिन' "ता
का तन "चिन्ता, का तन "चिन्ता ?" (पृ. ३०६) 'सा-रे-ग-म-प-ध-नि' के सम्बन्ध में भी यही बात दिखाई देती है :
“सा रे ग म यानी/सभी प्रकार के दुःख प"ध यानी ! पद-स्वभाव/और/नि यानी नहीं,
दुःख आत्मा का स्वभाव-धर्म नहीं हो सकता।" (पृ. ३०५) 'मूकमाटी' के द्वितीय खण्ड में साहित्य में प्रयुक्त विभिन्न रसों की चर्चा है और मानव के लिए उनकी उपयोगिता-अनुपयोगिता पर विचार भी व्यक्त किए गए हैं। वीर रस के सेवन से मानव-रक्त में उबाल आता है । जीवन में उद्रेक-उद्दण्डता का अतिरेक होता है :
"पर पर अधिकार चलाने की भूख/इसी का परिणाम है।
बबूल के ठूठ की भाँति/मान का मूल कड़ा होता है।” (पृ. १३१) - वीर रस की हँसी उड़ाते हुए हास्य रस अपनी महत्ता घोषित करते हुए कहता है कि हास्य से मनुष्य की उम्र बढ़ती है। शिल्पी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है :
"हँसन-शील/प्राय: उतावला होता है/कार्याकार्य का विवेक
गम्भीरता धीरता कहाँ उसमें ?/बालक-सम बावला होता है वह।" (पृ.१३३-१३४) रौद्र रस कराल-काला, लाल-लाल तेज़ाबी आँखों वाला, लम्बी फड़कती खतरनाक नाक वाला है । शिल्पी के द्वारा उसके सम्बन्ध में टिप्पणी की गई है :
"आमद कम खर्चा ज्यादा/लक्षण है मिट जाने का
कूबत कम गुस्सा ज्यादा/लक्षण है पिट जाने का।” (पृ. १३५) शृंगार के सम्बन्ध में कवि की उक्ति है कि अन्तरात्मा में निहित शृंगार ही वास्तविक और उपयोगी है।