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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 105 बहुपठित, ज्ञानी एवं पण्डित भी होता है । बहुज्ञता के पीछे यही विचारधारा निहित है । तुलसीदास, केशवदास, बिहारी, रत्नाकर इत्यादि की बहुज्ञता के बारे में पर्याप्त लेखन हुआ है। 'मूकमाटी' के रचयिता भी इस क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं। विद्यासागर नाम सही ढंग से 'मूकमाटी' में सार्थक हुआ है । आचार्यश्री ने प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण विषयों में अपनी गहरी पैठ का परिचय दिया है। प्रारम्भ साहित्य और व्युत्पत्ति शास्त्र से ही किया जाय । 'जो सहित है, वही साहित्य है ।' मानव जीवन को क्षुद्र, हेय और निराशायुक्त बनाने वाला साहित्य कभी वांछनीय नहीं हो सकता : “हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो सही साहित्य वही है/अन्यथा,/सुरभि से विरहित पुष्प-सम सुख का राहित्य है वह/सार-शून्य शब्द-झुण्ड..!" (पृ. १११) शब्दों की व्युत्पत्ति पर तो आचार्यश्री का असाधारण अधिकार है। कहीं-कहीं शब्दों के विलोम प्रयोग से भी वे गहरी अर्थवत्ता उत्पन्न करते हैं, जैसे 'राख-खरा, 'राही-हीरा, रसना-नासर, धरती-तीरध', 'धरणी-नीरध' इत्यादि। व्युत्पत्ति-शास्त्र के आधार पर 'नियति' और 'पुरुषार्थ' के अर्थ निम्नलिखित ढंग से निकाले गए हैं : " 'नि' यानी निज में ही/'यति' यानी यतन-स्थिरता है। अपने में लीन होना ही नियति है/निश्चय से यही यति है,/और 'पुरुष' यानी आत्मा-परमात्मा है/ 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य-प्रयोजन है आत्मा को छोड़कर/सब पदार्थों को विस्मृत करना ही/सही पुरुषार्थ है।" (पृ. ३४९) 'कुम्भकार' की नूतन व्याख्या देखिए : “ 'कुं' यानी धरती/और/'भ' यानी भाग्य-/यहाँ पर जो भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है ।" (पृ. २८) 'मूकमाटी' के कथ्य को गणित एवं संख्या-शास्त्र के माध्यम से भी व्यक्त किया गया है । कुम्भकार ने कुम्भ के कर्ण-स्थान पर ९९ और ९ इन दो संख्याओं को अंकित किया है। प्रथम क्षार-संसार की द्योतक है और द्वितीय क्षीरसार की। एक से मोह का विस्तार मिलता है, दूसरी से मोक्ष का द्वार खुलता है । ९९ को दो आदि संख्याओं से गुणित करने पर भले ही संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जाए परन्तु लब्ध संख्या को परस्पर मिलाने से ९ की संख्या ही शेष रहती है, यथा : "९९४२%१९८, १+९+८-१८, १+८-९ ९९४३-२९७, २+९+७=१८, १+८=९ ९९x४-३९६, ३+१+६=१८, १+८=९।" (पृ. १६६) इसी प्रकार ९ की संख्या को दो आदि संख्या से गुणित करने पर संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती हुई भी परस्पर मिलाने पर ज्यों की त्यों ९ की संख्या ही शेष रहती है, यथा :
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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