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________________ 100 :: मूकमाटी-मीमांसा आचार्यजी ने मूकमाटी के माध्यम से कुम्भ से ब्रह्माण्ड तक की कथा सँजोई है। 'मूकमाटी' आचार्य विद्यासागरजी का एक अप्रतिम महाकाव्य है । आचार्यजी ने सब कुछ अपने पर सह कर, सर्वस्व का त्याग कर माटी जैसी तुच्छ, मौन वस्तु को माध्यम बनाकर, उसके दर्द और व्यथा को वाणी प्रदान की है। बिना व्यथा के महाकाव्य की रचना नहीं की जा सकती। व्याध के बाण से बिंधे क्रौंच की चीख और सीता के निष्कासन की करुण कथा में से ही वाल्मीकि ने 'रामायण' जैसे महाकाव्य की रचना की। जिस माटी के घड़े में ठण्डा जल पिलाने की क्षमता है, उसे कितना सह कर, आग में तप कर यह गुण मिला है ! पहले उसे कुम्हार ने कुदाली से खोदा, फिर उसके कंकरों को साफ़ कर, पानी में सानकर, पाँवों से कुचलकर, चाक पर चढ़ाकर उसे 'घट' यानी घड़े का रूप दिया । फिर उसने अवे की 'आग' में तपने पर ही पूर्णता प्राप्त की। मनुष्य को जीवन शक्ति प्रदान करने के लिए, अन्न के उत्पादन के लिए खेत की मूकमाटी को कितना सहना पड़ा है। पहले उसे हल की नोक से चीर कर उसमें बीज बोया गया, फिर बीज अंकुरित होकर पौधा बना, फिर पल्लवित होकर फसल बना और उससे अन्न की प्राप्ति हुई। हमारे यहाँ ब्रह्मा को ही घट-घट का निर्माता प्रजापति' कहा गया है। मनुष्य का शरीर भी तो माटी का घट है । परमेश्वर ने उसमें प्राणों का संचार किया । यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक विशाल घट है। लेकिन सब कुछ अपने पर सह कर भी वह मूक है । माटी कभी कुछ बोलती नहीं। आचार्यश्री ने उसी मूकमाटी की व्यथा को वाणी प्रदान की है। इस तरह माटी की कथा, साहित्यकार की व्यथा सम्पूर्ण पृथ्वी की व्यथा-कथा है । उसे सुन्दर रूपक के माध्यम से, भावना पूर्ण शब्दों में महाकाव्य में बाँधना एक दुष्कर कार्य है । इसीलिए आचार्य विद्यासागर जी का 'मूकमाटी' महाकाव्य एक कालजयी रचना है। आपकी इस कालजयी रचना के लिए आने वाली पीढ़ियाँ शताब्दियों तक आपकी ऋणी रहेंगी। MVID/ पृष्ठ ०३ अधोमुखी जीवन उर्वमुखी गे/.... आपे पा जाते हैं, याँ पर।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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