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________________ 88 :: मूकमाटी-मीमांसा "एक बार और गुरु-चरणों में/सेठ ने प्रणिपात किया लौटने का उपक्रम हुआ, पर/तन टूटने लगा।/लोचन सजल हो गये पथ ओझल-सा हो गया/पद बोझिल से हो गये/रोका, पर/ रुक न सका रुदन, फूट-फूट कर रोने लगा/पुण्य-प्रद पूज्य-पदों में/लोटपोट होने लगा।” (पृ. ३४६) आहार दान के प्रकरण में अपार श्रद्धा के पात्र मुनि को आहार देने के लिए श्रावकों की आतुरता का जो वर्णन किया गया है वह भक्तिरस से ओत-प्रोत है। संसार की निस्सारता, जीवन की क्षणभंगुरता और परमात्मतत्त्व की सारभूतता का वर्णन या इनकी अनुभूति का वर्णन शान्तरस के विभाव हैं। इनके वर्णन से पाठक के मन में सांसारिक विषयों के प्रति अनाकर्षण और रुचि का भाव उद्बुद्ध होता है जिससे इच्छानिरोधजन्य शमभाव की अनुभूति होती है । यही शान्तरस का आस्वादन है । प्रस्तुत काव्य में इसके कई जगह दर्शन होते हैं। श्रोत्रेन्द्रिय के विषय की निस्सारता के बोध की यह अभिव्यक्ति शान्तरस की व्यंजना करती है : "ओ श्रवणा!/कितनी बार/श्रवण किया स्वर का ओ मनोरमा !/कितनी बार/स्मरण किया स्वर का कब से चल रहा है/संगीत - गीत यह कितना काल अतीत में/व्यतीत हुआ, पता हो, बता दो..! भीतरी भाग भीगे नहीं अभी तक दोनों बहरे अंग रहे/कहाँ हुए हरे भरे ?" (पृ. १४४) इष्ट और अनिष्ट में समभाव की अनुभूति का यह वर्णन शान्तरस का अप्रतिम उदाहरण है : "सुख के बिन्दु से/ऊब गया था यह/दुःख के सिन्धु में/डूब गया था यह, कभी हार से/ सम्मान हुआ इसका,/कभी हार से/ अपमान हुआ इसका। कहीं कुछ मिलने का/लोभ मिला इसे,/कहीं कुछ मिटने का/क्षोभ मिला इसे, कहीं सगा मिला, कहीं दगा,/भटकता रहा अभागा यह !/परन्तु आज, यह सब वैषम्य मिट-से गये हैं/जब से "मिला"यह मेरा संगी संगीत है/स्वस्थ जंगी जीत है।” (पृ. १४६-१४७) आहार-ग्रहण के समय आराध्य के वीतराग स्वरूप का जो निरूपण किया गया है (पृष्ठ ३२६) वह भी शान्तरस का आस्वादन कराता है। आतंकवादियों के प्रकरण में रौद्र रस का प्रसंग भी है। कहीं बीभत्स और वीर की भी झलक मिलती है। मनोवैज्ञानिक तथ्यों का उद्घाटन : महाकाव्य में कई जगह मनोवैज्ञानिक तथ्यों का उद्घाटन किया गया है। कंकरों के प्रसंग में 'स्वजाति१रतिक्रमा' तथ्य उन्मीलित हुआ है । बड़वानल का प्रकरण इस तथ्य को उद्घाटित करता है कि आवश्यकता पड़ने पर सज्जन को भी उग्रता का आश्रय लेना पड़ता है। निम्न पंक्तियाँ भी एक महान् मनोवैज्ञानिक सत्य पर प्रकाश डालती हैं:
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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