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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 85 “पात्र हो पूत-पवित्र/पद-यात्री हो, पाणिपात्री हो पीयूष-पायी हंस-परमहंस हो,/अपने प्रति वज्र-सम कठोर पर के प्रति नवनीत"/...पवन-सम निःसंग/दर्पण-सम दर्प से परीत पादप-सम विनीत ।/नदी-प्रवाह-सम लक्ष्य की ओर अरुक, अथक गतिमान/...सिंह-सम निर्भीक ।” (पृ. ३००-३०१) पथ-प्रकाशक सूक्तियाँ : 'मूकमाटी' में जीवन पथ को आलोकित करने वाले सूक्तिरत्न बिखरे पड़े हैं जो मन को जगमगा देते हैं। कुछ उदाहरण दर्शनीय हैं : 0 “आस्था के बिना रास्ता नहीं/मूल के बिना चूल नहीं।” (पृ. १०) ० “संघर्षमय जीवन का/उपसंहार/नियमरूप से/हर्षमय होता है।" (पृ. १४) "दुःख की वेदना में/जब न्यूनता आती है/दुःख भी सुख-सा लगता है।” (पृ. १८) 0 “पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है।" (पृ. ३३) ० “सब रसों का अन्त होना ही-/शान्त-रस है।" (पृ. १६०) 0 “तीर मिलता नहीं बिना तैरे।” (पृ. २६७) सटीक मुहावरे : मुहावरे उपचारवक्रता (लाक्षणिक प्रयोग) के सुन्दर नमूने हैं। उनसे अभिव्यक्ति लाक्षणिक और व्यंजक बन जाती है जो काव्यकला का प्राण है । इस कारण उनमें हृदयस्पर्शिता एवं रमणीयता रहती है। आचार्यकवि ने मुहावरों का सटीक प्रयोग करके कथन को काव्यात्मक चारुत्व से मण्डित किया है तथा अभिव्यक्ति को तीक्ष्ण बनाया है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं। निम्न उद्धरणों में मुहावरे रेखांकित करके दर्शाए गए हैं : "अरे मौन ! सुन ले जरा/कोरी आस्था की बात मत कर तू आस्था से बात कर ले जरा!" (पृ. १२१) यहाँ ‘की बात मत कर' और 'से बात कर ले' इन दो मुहावरों ने 'कथनी' की निरर्थकता और 'करनी' की सार्थकता की अभिव्यंजना को सौन्दर्य के उत्कर्ष पर पहुँचा दिया है : “शिल्पी का दाहिना चरण/मंगलाचरण करता है।” (पृ. १२६) कार्य आरम्भ करने के भाव की अभिव्यक्ति ‘मंगलाचरण करने के' मुहावरे से कितनी रमणीय बन गई है। "...मानव-खून/खूब उबलने लगता है ...शान्त माहौल भी खौलने लगता है।” (पृ. १३१) ये मुहावरे जन-आक्रोश तथा सामाजिक अशान्ति की पराकाष्ठा को अभिव्यक्ति देते हुए उक्ति को चारुत्व से मण्डित करते हैं।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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