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78 :: मूकमाटी-मीमांसा की अनिवार्यता ने कई एक प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। जीवन की नई संकल्पनाओं का आग्रह आदमी को अपनी ओर खींच रहा है । प्राचीनता, परम्परा, नवीनता, विद्रोह के बीच फँसा आदमी बीच में ही लटक रहा है । व्यक्तिनिष्ठा, व्यक्ति स्वतन्त्रता, आत्मलिप्तता एक ओर बलवती बन गई है तो दूसरी ओर समष्टि की, वास्तव की व्यापकता, विराटता एवं सामूहिकता उसे पराजित कर रही है। ऐसी स्थिति में जीव अकेलेपन, क्षुद्रता और मूल्यहीनता से ग्रस्त है। वह मिट्टी से भी गया-बीता महसूस कर रहा है।
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सम्भवत: इसी कारण आचार्यजी ने माटी को ही इस काव्य का प्रधान पात्र बनाया है। आँधी. पानी. आतंक एवं विनाश को जीतनेवाली माटी आज के खण्डित, क्षुद्र जीव की प्रतीक है। जीव अगर प्रतिज्ञाबद्ध होता है, स्वार्थ से ऊपर उठता है, आग में तपता है, आँधी-पानी से जूझता है, आतंक एवं विनाश से लोहा लेता है तो उसकी क्षुद्रता समाप्त हो सकती है । वह स्वयं भी ऊपर उठ सकता है तथा अपने साथ अपने समाज को भी ऊपर उठा सकता है। आचार्यजी ने 'मूकमाटी' में इस तथ्य को स्पष्ट किया है। माटी जनसामान्य का प्रतिनिधित्व करती है। जनसाधारण भी माटी के समान मूक ही होता है । उसका ऊपर उठना, ऊर्ध्वगामी बनना निश्चित है। वर्तमान जटिलताओं से जूझ कर, विनाशक आतंक से लड़ कर, फिर भी शुभ संकल्प को अपना कर, उसके लिए अथक, अडिग प्रयास कर, औरों के प्रति ईर्ष्या-द्वेष न रख कर तथा अपने साथ समाज को लेकर वह गन्तव्य तक पहुँच सकता है।
आचार्यजी ने यद्यपि मूकमाटी के ऊर्ध्वगामित्व को अध्यात्म के स्तर पर प्रस्तुत किया है, जो उनके चिन्तन के अनुरूप ही है, तथापि मेरी सम्मति में प्रस्तुत कृति जनसाधारण के अप्रतिहत ऊपर उठने की भी कहानी है। वर्तमान किंकर्तव्यविमूढ़ समाज के सामने आपने नया आदर्श प्रस्तुत किया है । भारतीय चिन्तन परम्परा और मानसिकता के अनुरूप आपने इसे आध्यात्मिक स्तर पर प्रस्तुत किया है। यह दृष्टिकोण और उद्देश्य महान् लक्ष्य को सूचित करता है, जो महाकाव्य का विषय अवश्य बन सकता है। आचार्यजी ने इस सूत्र को विभिन्न जटिलताओं के माध्यम से, महाकाव्यात्मक ढंग से चित्रित किया है।
अपनी अपूर्व प्रतिभा के बल पर, संवेदनशीलता और शुभ भावना के बल पर इस कृति को महाकाव्यात्मक रूप देने में आप पूरी तरह से सफल हुए हैं। 'मूकमाटी' वर्तमान युग के जनसाधारण की विजय की महाकाव्यात्मक अभिव्यक्ति
पृष्ठ १४५ किसी ज्य में बँध कर -- -- मुक्त नंगी रीत है
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