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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 75 आचार्यजी के पाण्डित्य और भाषाधिकार को सिद्ध करती है । भयानक रस का यह चित्र देखिए : "भीतर से बाहर, बाहर से भीतर/एक साथ, सात-सात हाथ के सात-सात हाथी आ-जा सकते/इतना बड़ा गुफा-सम महासत्ता का महाभयानक/मुख खुला है/जिसकी दाढ़-जबाड़ में सिंदरी आँखोंवाला भय/बार-बार घूर रहा है बाहर, जिसके मुख से अध-निकली लोहित रसना/लटक रही है और/जिससे टपक रही है लार/लाल-लाल लहू की बूंदें-सी।" (पृ. १३६) भयानक के समान आतंकवाद का चित्र भी द्रष्टव्य है: "मस्तक के बाल/सघन, कुटिल और कृष्ण हैं जो स्कन्धों तक आ लटक रहे हैं/कराल-काले व्याल से लगते हैं।" (पृ. ४२७) चित्रात्मक शैली में वर्ण्य-विषय का यथातथ्य, परिपूर्ण एवं प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत करने में मुनिजी की काव्यकुशलता पूर्णत: निखर उठती है । सहज, सरल और स्पष्ट, अभिधामूलक शब्दों द्वारा बाह्य चित्र के साथ-साथ चारित्रिक विशेषता और परम्परापुष्ट सांस्कृतिक धरोहर का सम्मिश्रण आपके काव्य कौशल की अन्यतम विशेषताएँ चित्रशैली के साथ-साथ तुलनात्मक शैली का प्रयोग भी विशेष आकर्षक है । 'अध्यात्म' और 'दर्शन', 'ही' और 'भी' की तुलनाएँ इस सन्दर्भ में विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। तुलनीय विषय की तह तक पहुँचने, उचित स्थान पर चिन्तन अथवा व्यंग्य का प्रयोग करने तथा वर्ण्य विषय के पहलुओं की भिन्नता को पूर्णरूपेण प्रस्तुत करने की क्षमता अपूर्व है। ___ दीपक और 'मशाल' की तुलना इस सन्दर्भ में विशेष द्रष्टव्य है । साधारणतः, एक पक्ष की श्रेष्ठता तथा दूसरे की कनिष्ठता दिखाने के लिए तुलना की जाती है। अध्यात्म और दर्शन की तुलना में श्रेष्ठता-कनिष्ठता वाला अंश कम है, लेकिन 'ही' और 'भी' तथा 'दीपक' और 'मशाल' की तुलना में यह अंश अधिक है । तुलना में अहंकार तुष्टि, आत्मश्लाघा तथा श्रेष्ठता को स्थान होता है । अत: इससे स्पर्धा बढ़ती है । आचार्यजी ने एक स्थान पर तुलना के बारे में सही लिखा है: "वह तुलना की क्रिया ही/प्रकारान्तर से स्पर्धा है; स्पर्धा प्रकाश में लाती है/कहीं सुदूरजा"भीतर बैठी अहंकार की सूक्ष्म सत्ता को।" (पृ. ३३९) इस प्रकार आचार्यजी के लेखन में चिन्तन को विशेष स्थान प्राप्त है। आपके कवि की कुशलता ने चिन्तन को समूर्तता, नाटकीयता, भावात्मकता प्रदान की है और इनसे विभिन्न शैलियों की सृष्टि हो सकी है। 'मूकमाटी' में तत्सम शब्दावली की प्रधानता है। कहीं-कहीं तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। आदमी 'परन्तु', 'गलत', 'लत' आदि हिन्दी-संस्कृतेतर शब्दों के प्रयोग भी प्राप्त होते हैं किन्तु इनकी संख्या सीमित है तथा वे बहुप्रचलित भी हैं। कृति में आवश्यक स्थानों पर मुहावरों का भी उचित प्रयोग किया गया है । सूक्तिमयता इसकी सहजप्राप्त विशेषता है, यथा : 0 "गगन का प्यार कभी/धरा से हो नहीं सकता मदन का प्यार कभी/जरा से हो नहीं सकता।" (पृ. ३५३) 0 “मन की छाँव में ही/मान पनपता है।" (पृ. ९७)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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