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46 :: मूकमाटी-मीमांसा उद्देश्य
समरसता के प्रसार में अथवा मानवता के विकास में काव्य का महत्त्वपूर्ण योग होता है । सच्चा कवि अपने हृदय की अनुभूति को सर्व साधारण की अनुभूति बनाकर एक गौरव, शान्ति एवं आनन्द की अनुभूति करता है । कवि के काव्य की सफलता इसी में है कि उसकी अनुभूति और उसका आनन्द साधारणीकरण में हो जाय।
___ महाकाव्य के उद्देश्यों में भारतीय साहित्य शास्त्र के अनुसार चतुर्वर्ग की प्राप्ति को महत्त्व दिया गया है । चतुर्वर्ग में सर्वप्रथम स्थान धर्म का है जो सार्वदेशिक और सार्वकालिक होता है । वह किन्हीं निश्चित सीमाओं में आबद्ध नहीं होता । अर्थ और काम का भी जीवन में महत्त्व है, किन्तु धर्म से नियन्त्रित होकर। हिन्दी महाकाव्यों में मानवता के सन्देश भरे पड़े हैं। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गुप्तजी के राम इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आए हैं। 'प्रिय प्रवास' के कृष्ण लोक-नायक हैं और 'कामायनी' तो मानवता के उद्धार के लिए ही लिखी गई है। 'मूकमाटी' का उद्देश्य भी मानवता का कल्याण है । माटी घट का रूप लेती है। घट अग्नि-परीक्षा में खरा उतरने के पश्चात् मानव की भूख-प्यास मिटाने के पुनीत कार्य में संलग्न हो जाता है। नायक-नायिका
'मूकमाटी' की नायिका स्पष्ट रूप से माटी ही है । नायक कुम्भकार को माना जा सकता है और कुम्भकार कौन है? स्वयं अर्हन्त देव । नायिका और नायक की प्रणय-कथा भी स्पष्ट है । यह प्रणय है आध्यात्मिक प्रणय । वही प्रणय जो जायसी में परमतत्त्व के प्रति है, वही प्रणय जो कबीर में निराकार ब्रह्म के प्रति है, वही प्रणय जो मीरा में निराकार-साकार ब्रह्म के प्रति और सूर-तुलसी में साकार ब्रह्म के प्रति ।
___ माटी युगों-युगों से कुम्भकार की प्रतीक्षा में है, जो उसका उद्धार करेगा और मंगल घट का रूप देगा। मंगल घट की सार्थकता है गुरु के पाद प्रक्षालन में।
महाकाव्यात्मक गरिमा को लेकर वस्तुत: आज के युग में 'प्रिय प्रवास, 'साकेत, 'कामायनी' और 'कुरुक्षेत्र' महाकाव्य ही लिखे गए हैं। 'प्रिय प्रवास, 'साकेत' दोनों पर 'काव्येर-उपेक्षिता' और आधुनिक बौद्धिकता का प्रभाव है। प्रथम में कृष्णाख्यान का नवीनीकरण है और द्वितीय में रामाख्यान का। 'साकेत' गीति प्रबन्ध की खिचड़ी भले ही हो पर युग की दुविधाग्रस्त मन:स्थिति का दर्पण अवश्य है । सामान्यत: साकेत बिखरे गृह जीवन का सुधरा हुआ चित्र है। 'कामायनी' गीति और प्रबन्ध के समन्वय के रूप में प्रकट होती है। प्रसाद ने इसमें आधुनिक मानवीय चेतना का मानों इतिहास ही प्रस्तुत कर डाला है। दिनकर का 'कुरुक्षेत्र' कथानक से हीन होते हुए भी रोचक और नवीन दर्शन से ओतप्रोत है, “शान्ति नहीं तबतक, जबतक सुख-भाग न नर का सम हो' ही इसका सन्देश है।
आगे जीवित रहने के लिए महाकाव्य ने अपनी परिभाषा बदल दी है, 'मूकमाटी' के रूप में । 'मूकमाटी' महाकाव्य भी है, खण्ड काव्य भी है, मात्र काव्य भी है। इसमें धर्म है, दर्शन है, जीवन है । इसमें "फूल से नहीं, फल से तृप्ति का अनुभव होता है।" पर यह दर्शन गीता के दर्शन से विरोध नहीं करता क्योंकि फल तभी मिलेगा, जब कर्म किया जाएगा और जब फल मिलेगा तभी तृप्ति होगी। यह शब्द, बोध और शोध को परिभाषित करने वाला महाकाव्य है। इसमें ज्ञान है, विज्ञान है, आयुर्वेद के प्रयोग हैं, गणित के अंकों के चमत्कार हैं। इसमें क्षमा है, दया है और है क्षमा के माध्यम से आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन भी।
मैं 'मूकमाटी' का स्वागत करता हूँ और उसके रचयिता आचार्य विद्यासागर को प्रणाम करता हूँ।
पृष्ठ १९०- लो। प्रखर प्रकरतर..---जामधि को बार बार
भर कर