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42 :: मूकमाटी-मीमांसा
बला यानी समस्या संकट है/न बला" सो अबला ।" (पृ. २०३)
___'स' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं। धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है
सो"स्त्री कहलाती है।" (पृ. २०५) १७. दुहिता : "दो हित जिसमें निहित हों/वह 'दुहिता' कहलाती है
अपना हित स्वयं ही कर लेती है,/पतित से पतित पति का जीवन भी
हित सहित होता है, जिससे/वह दुहिता कहलाती है।" (पृ. २०५) १८. अंगना : "मैं 'अंगना' हूँ/परन्तु,/मात्र अंग ना हूँ...
और भी कुछ हूँ मैं"!" (पृ. २०७) १९. स्वप्न : “ 'स्व' यानी अपना/'प' यानी पालन-संरक्षण/और
'न' यानी नहीं,/जो निज-भाव का रक्षण नहीं कर सकता।" (पृ.२९५) २०. सा-रे-ग-म- __"सारे गम यानी/सभी प्रकार के दु:ख/प"ध यानी ! ___प-ध-नि: पद-स्वभाव और/नि यानी नहीं,
दुःख आत्मा का स्वभाव-धर्म नहीं हो सकता।” (पृ. ३०५) २१. स्वर्ण : "परतन्त्र जीवन की आधार-शिला हो तुम,/पूँजीवाद के अभेद्य
दुर्गम किला हो तुम/और/अशान्ति के
अन्तहीन सिलसिला !" (पृ. ३६६) २२. कला: " 'क' यानी आत्मा-सुख है/'ला' यानी लाना-देता है
कोई भी कला हो/कला मात्र से जीवन में
सुख-शान्ति-सम्पन्नता आती है ।" (पृ. ३९६) 'मूकमाटी' सूक्तियों-नीतियों का काव्य
. महापुरुषों की वाणियों में अद्भुत शक्ति होती है । कठिनाई के समय अथवा कर्तव्यगत द्वन्द्व उपस्थित होने पर सूक्तियाँ प्रकाश एवं प्रेरणा देती हैं। सूक्तियाँ साहित्य गगन में देदीप्यमान उज्ज्वल नक्षत्र के समान हैं। इनकी आभा देश और काल की संकुचित सीमा पार करके सर्वदा एक समान और एक रस रहने वाली है। मानव जीवन के विविध क्षेत्रों में सहस्रों वर्षों की अनुभूतियों ने इनको अमरता प्रदान की है और करोड़ों कण्ठों से निकलने के कारण इनमें माधुर्य एवं कोमलता का समावेश हो गया है । इन सूक्तियों के अभाव में रस की स्थिति बाधित होती है और कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध और वक्तव्य कला विकल हो जाती है । दस-बीस वाक्यों को ही नहीं, पूरे पृष्ठ एवं सन्दर्भ को सजीव बनाने की क्षमता सूक्तियों में होती है। अनेक प्राचीन साहित्यकारों के सम्बन्ध में ऐसी अनेक किंवदन्तियाँ प्रसिद्ध हैं कि उनकी एक सूक्ति से ही बड़े-बड़े अनर्थ एवं दुर्घटनाएँ रुक गई हैं और घनान्धकार में भी पथ-प्रदर्शन हुआ है । सूक्तियों में शिक्षा एवं सदपयोग की जितनी अमोघ शक्ति रहती है, उतनी ही आत्ममन्थन एवं अनभतियों को झंकत करने की क्षमता भी होती है।
संसार में व्यवहार कुशल होने के लिए एवं सुखपूर्वक निर्वाह के लिए नीति का जानना अति आवश्यक है ।