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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 41 १०. मोह तथा मोक्ष : “पर-पदार्थ से प्रभावित होना ही/मोह का परिणाम है और सब को छोड़कर/अपने आप में भावित होना ही मोक्ष का धाम है।" (पृ. १०९-११०) ११. साहित्य : “हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है/और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है, जिस के अवलोकन से सुख का समुद्भव-सम्पादन हो/सही साहित्य वही है/अन्यथा, सुरभि से विरहित पुष्प-सम/सुख का राहित्य है वह सार-शून्य शब्द-झुण्ड'!" (पृ. १११) १२. रस : १. “वीर रस से तीर का मिलना/कभी सम्भव नहीं ।" (पृ. १३१) २. "करुणा-रस जीवन का प्राण है।” (पृ. १५९) ३. “वात्सल्य-जीवन का त्राण है।” (पृ. १५९) ४. "शान्त रस जीवन का गान है ।" (पृ. १५९) १३. दोगला : आचार्य कवि ने 'दोगला' के तीन अर्थ किए हैं, यथा : "चार अक्षरों की एक और कविता/"मैं दो गला" इस से पहला भाव यह निकलता है, कि मैं द्विभाषी हूँ/भीतर से कुछ बोलता हूँ/बाहर से कुछ और.. पय में विष घोलता हूँ।/अब इसका दूसरा भाव सामने आता है : मैं दोगला,/छली, धूर्त, मायावी हैं/अज्ञान-मान के कारण ही इस छद्म को छुपाता आया हूँ/यूँ, इस कटु सत्य को, सब हितैषी तुम भी स्वीकारो अपना हित किसमें है ?/और इसका तीसरा भाव क्या है-/पूछने की क्या आवश्यकता है? सब विभावों-विकारों की जड़/'मैं" यानी अहं को दो गला-कर दो समाप्त ।” (पृ. १७५) १४. कुमारी : ___ 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और/'री' यानी देने वाली... इससे यह भाव निकलता है कि/यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना तब तक रहेगी/जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।" (पृ. २०४) १५. अबला : अबला की व्याख्या आचार्यजी ने निम्न रूपों में की है : "जो अव यानी/ अवगम'-ज्ञानज्योति लाती है, तिमिर-तामसता मिटाकर/जीवन को जागृत करती है अबला कहलाती है वह ! अथवा, जो/पुरुष-चित्त की वृत्ति को/विगत की दशाओं/और अनागत की आशाओं से/पूरी तरह हटाकर/ 'अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है/अबला कहलाती है वह !
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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