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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 39 लिखते हैं : "मस्तक के बल भू-कणों ने भी/ओलों को टक्कर देकर/उछाल दिया शून्य में बहुत दूर "धरती के कक्ष के बाहर,/ आर्यभट्ट, रोहिणी' आदिक उपग्रहों को उछाल देता है/यथा प्रक्षेपास्त्र!" (पृ. २५०) १२. स्टार वार का सन्दर्भ देते हुए विद्वान् कवि का कथन है : "ओलों को कुछ पीड़ा न हो,/यूँ विचार कर ही मानो उन्हें मस्तक पर लेकर/उड़ रहे हैं भू-कण ! सोऐसा लग रहा, कि/हनूमान अपने सर पर हिमालय ले उड़ रहा हो!/यह घटना-क्रम घण्टों तक चलता रहा"लगातार, इसके सामने 'स्टार-वार'/जो इन दिनों चर्चा का विषय बना है विशेष महत्त्व नहीं रखता।” (पृ. २५१) १३. स्थल-स्थल में कवि ने पौराणिक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए 'मूकमाटी' को और भी आकर्षक बना दिया है। मध्यकालीन जैन ग्रन्थों में जहाँ कहीं भी रामायण के प्रसंग आए हैं, उनके साथ पूर्ण न्याय नहीं किया गया । विद्यासागरजी ने रामायण के प्रसंगों को उनके सही रूपों में अपना कर उनके साथ न्याय किया है। साथ ही अपनी श्रद्धा दर्शाई है, यथा : लक्ष्मण-मूर्छा प्रसंग : "जिस भौति/लक्ष्मण की मूर्छा टूटी/अनंग-सरा की मंजुल अंजुलि के जल-सिंचन से ।/सरिता के उछले हुए/सलिल-कणों के शीतल परस पा आतंकवाद की मूर्छा टूटी।" (पृ. ४६७) कामदेव एवं महादेव प्रसंग : "लोक-स्याति तो यही है/कि/कामदेव का आयुध फूल होता है और/महादेव का आयुध शूल ।/एक में पराग है/सघन राग है जिस का फल संसार है/एक में विराग है/अनघ त्याग है जिसका फल भव-पार है।" (पृ. १०१-१०२) १४. साहित्य की सरल-सीधी परिभाषा देते हुए आचार्यजी ने लिखा है : “हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है/और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो सही साहित्य वही है/अन्यथा,/सुरभि से विरहित पुष्प-सम सुख का राहित्य है वह/सार-शून्य शब्द-झुण्ड"!" (पृ. १११) इस तरह सन्दर्भो की दृष्टि से 'मूकमाटी' महाकाव्य में ज्ञान है, विज्ञान है, अध्यात्म है, दर्शन है, धर्म है, नीति है, आस्था है, विश्वास है, श्रम है, श्रम बिन्दु है, साहित्य है, समाज है और है रीति-नीति ।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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