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38 :: मूकमाटी-मीमांसा ८. मनुष्य का मन बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। मन के भाव से ही पाप माना जाता है, वचन या कर्म से नहीं। पत्नी और
पुत्री के आलिंगन में भाव की ही भिन्नता होती है । मन बड़ा जादूगर और महान् चित्रकार होता है। ब्रह्म सृष्टि का तत्त्व है । संकल्प के बिना सृष्टि नहीं होती और मन के बिना संकल्प नहीं होता। 'ब्रह्म-बिन्दु उपनिषद्' का कथन
"मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्धमोक्षयोः ।
बन्धाय विषयासक्तं, मुक्तं निर्विषयं स्मृतम् ॥" स्वामी शंकराचार्य कहते हैं : “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।'' 'महाभारत' के वन पर्व में वेदव्यास का कथन है : “मन का दु:ख मिट जाने पर शरीर का दुःख भी मिट जाता है।" 'गीता' का कथन है:
"चंचलं हि मनः कृष्ण, प्रमाथि बलवद् दृढम् ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये ! वायोरिव सुदुष्करम् ॥” (६/३४) कृष्ण अर्जुन से यह भी कहते हैं : “हे महाबाहो ! निःसन्देह मन बड़ा चंचल है, यह रुक नहीं सकता । परन्तु हे कौन्तेय ! अभ्यास और वैराग्य से यह वश में किया जा सकता है।" तुलसी 'अयोध्या काण्ड' में लिखते हैं : "बिन मन तन दुःख सुख सुधि केही ?" आचार्यजी ने भी मन का विश्लेषण किया है। इस सन्दर्भ में अपना मत देते हुए वे लिखते
"अच्छा, बुरा तो/अपना मन होता है/स्थिर मन ही वह/महामन्त्र होता है और/अस्थिर मन ही/पापतन्त्र स्वच्छन्द होता है,
एक सुख का सोपान है/एक दुःख का सो-पान है।" (पृ. १०८-१०९) ९. श्वान एवं सिंह की चर्चा करते हुए विद्वान् कवि ने स्पष्ट किया है कि सिंह कभी किसी पर श्वान की तरह पीछे से
हमला नहीं करता, सिंह कभी बिना ग़रज़ नहीं गरजता, स्वामी के पीछे-पीछे एक टुकड़े के लिए पूँछ नहीं हिलाता, उसके गले में पट्टा बँधा नहीं होता । श्वान को पत्थर मारने पर वह पत्थर को ही पकड़ कर काटता है, जबकि सिंह विवेक से काम लेता है और उसकी दृष्टि मारने वाले पर ही जाती है । वे आगे लिखते हैं :
"श्वान-सभ्यता-संस्कृति की/इसीलिए निन्दा होती है/कि वह अपनी जाति को देख कर/धरती खोदता, गुर्राता है। सिंह अपनी जाति में मिलकर जीता है
राजा की वृत्ति ऐसी ही होती है।" (पृ. १७१) १०. 'ही' और 'भी' के पार्थक्य की चर्चा 'मूकमाटी'कार ने बड़ी स्पष्टता से की है। वे लिखते हैं कि 'ही' एकान्तवाद
का समर्थक है तथा 'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक है। एक उर्दू शायर कहता है : “हमी हम हैं तो क्या हम हैं, तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो।” 'मूकमाटी' के रचयिता लिखते हैं :
"हम ही सब कुछ हैं/यूँ कहता है 'ही' सदा, तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो !/और,
'भी' का कहना है कि/हम भी हैं/तुम भी हो/सब कुछ !" (पृ. १७२-१७३) ११. समसामयिक वैज्ञानिक सन्दर्भो को भी आत्मसात् किया गया है। 'मूकमाटी' में प्रक्षेपण की चर्चा करते हुए कवि