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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 37 ५. भारतीय संस्कृति का मूल मन्त्र रहा है-“वसुधैव कुटुम्बकम् ।” आज यह मन्त्र विकृत हो चुका है । आचार्यजी के शब्दों में: “ “वसुधैव कुटुम्बकम्"/इसका आधुनिकीकरण हुआ है 'वसु' यानी धन-द्रव्य/'धा' यानी धारण करना/आज धन ही कुटुम्ब बन गया है/धन ही मुकुट बन गया है जीवन का।" (पृ. ८२) ६. फूल की महत्ता तो निर्विवाद है, फल की भी अपनी महत्ता होती है। काँटे से ही काँटा निकाला जाता है। बिहारी की नायिका के पैरों में काँटा चुभकर मानों उसे मरने से बचा लेता है : एहि काँटा मो पाँय गड़ि लीन्हो मरत जियाय । प्रीति जतावत भीत सो, मीत जो काढ्यौ आय ॥ 'दिनकर' काँटे की महत्ता दर्शाते हुए लिखते हैं : "तुम फूल नहीं हो शूल सही,/गुल के उपवन में आए जो, फूलों में हाथ लगाए जो/उँगली में उसकी गड़ सकते, कर को क्षत विक्षत कर सकते/तलवारें बजती जहाँ वहाँ आती काँटों की बारी भी/ज्वाला अखंड फैला सकती। छोटी सी चिनगारी भी।" उधर उर्दू शायर कहता है : "गुलों से खार अच्छे हैं, जो दामन थाम लेते हैं।" इस सन्त कवि का कथन है : "सूक्ष्माति-सूक्ष्म/स्थान एवं समय की सूचना/सूचित होती रहती है सहज ही शूलों में ।/अन्यथा,/दिशा-सूचक यन्त्रों/और समय-सूचक यन्त्रों-घड़ियों में/काँटे का अस्तित्व क्यों ?" (पृ. १०४) ७. धीर-गम्भीर पुरुष अजातशत्रु होते हैं। विश्व को शान्ति एवं मैत्री का सन्देश देते हैं। उनका हृदय विश्व प्रेम से भरा होता है । घृणा अथवा विद्वेष के भाव उनमें नहीं होते। एक उर्दू शायर लिखता है : “करूं मैं दुश्मनी किससे, कोई दुश्मन तो हो अपना मुहब्बत ने नहीं छोड़ी जगह, दिल में अदावत की।" आचार्य विद्यासागर का शिल्पी अजातशत्रु है । इसीलिए उसका कथन है : "खम्मामि, खमंतु मे-/क्षमा करता हूँ सबको,/क्षमा चाहता हूँ सबसे, सबसे सदा-सहज बस/मैत्री रहे मेरी!/वैर किससे/क्यों और कब करूँ ? यहाँ कोई भी तो नहीं है/संसार-भर में मेरा वैरी!" (पृ. १०५)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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