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480 :: मूकमाटी-मीमांसा
0 “परीषह-उपसर्ग के बिना कभी/स्वर्ग और अपवर्ग की उपलब्धि
न हुई, न होगी/त्रैकालिक सत्य है यह !" (पृ. २६६) - "आधा भोजन कीजिए/दुगुणा पानी पीव ।।
तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव !" (पृ. १३३) “आमद कम, खर्चा ज़्यादा/लक्षण है मिट जाने का
कूबत कम, गुस्सा ज़्यादा/लक्षण है पिट जाने का।” (पृ. १३५) 0 "लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन (मर्यादा का उल्लंघन)
रावण हो या सीता/राम ही क्यों न हों/दण्डित करेगा ही।" (पृ. २१७) आज के प्रमुख महत्त्वपूर्ण विषयों पर, यथा- समाज में नारी का स्थान, प्रजातन्त्र, आतंकवाद, स्टार-वार आदि की भी स्पष्ट विवेचना इस काव्य में हुई है। समाजवाद का सम्यक रूप देखिए :
"प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है।
समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से/समाजवादी नहीं बनोगे।" (पृ. ४६१) इसी प्रकार आतंकवाद के कारण के विषय में उल्लेख हुआ है :
"यह बात निश्चित है कि/मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है।/अति-पोषण या अतिशोषण का भी यही परिणाम होता है,/तब/जीवन का लक्ष्य बनता है, शोध नहीं, बदले का भाव "प्रतिशोध !/जो कि/महा-अज्ञानता है, दूरदर्शिता का अभाव
पर के लिए नहीं,/अपने लिए भी घातक !'(पृ. ४१८) आज अर्थ (धन) की प्राप्ति ही मानवों का एकमात्र ध्येय बना हुआ है परन्तु अर्थ का सही मूल्य आँकने वाले कम ही हैं। अर्थ के सम्बन्ध में रचनाकार का मन्तव्य है :
“धन का अपने आप में मूल्य/कुछ भी नहीं है। मूल-भूत पदार्थ ही/मूल्यवान होता है ।/धन कोई मूलभूत वस्तु है ही नहीं धन का जीवन पराश्रित है/पर के लिए है, काल्पनिक ! हाँ ! हाँ !!/धन से अन्य वस्तुओं का/मूल्य आँका जा सकता है वह भी आवश्यकतानुसार/कभी अधिक कभी हीन
और कभी औपचारिक,/और यह सब/धनिकों पर आधारित है। धनिक और निर्धन-/ये दोनों/वस्तु के सही-सही मूल्य को स्वप्न में भी नहीं आँक सकते,/कारण,/धन-हीन दीन-हीन होता है प्रायः और/धनिक वह/विषयान्ध, मदाधीन !!" (पृ. ३०७-३०८ )