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'मूकमाटी' : आधुनिक हिन्दी काव्य जगत् की अनूठी कृति
लादूलाल जैन
आचार्य विद्यासागर दर्शन एवं अध्यात्म जगत् के एक ज्योतिर्मय रत्न हैं। कर्नाटक के एक ग्राम में जन्मा बालक विद्याधर, मुनि ज्ञानसागर रूपी पारस पत्थर का स्पर्श पाकर विद्यासागर रूपी स्वर्ण बन गया । धन्य हैं वे आचार्य ज्ञानसागर, जिन्होंने बाईस वर्षीय युवा मुनि विद्यासागर को चार वर्ष तक अपनी ज्ञान गंगा में अवगाहन कराकर आचार्य विद्यासागर के रूप में प्रवाहित कर दिया। आज वे आचार्य विद्यासागर अपने ज्ञान और चारित्र से जन-जन को प्रभावित कर सहस्रों युवा-युवतियों को रत्नत्रय के पावन मार्ग पर लगाते हुए स्व-पर-कल्याण में तल्लीन हैं। योग्य गुरु से प्राप्त सम्यक् ज्ञान, चारित्र को योग्य शिष्य ने शतगुणी धाराओं में प्रवाहित कर दिया है ।
आचार्य विद्यासागर जहाँ एक ओर ख्याति, लाभ, पूजा एवं आडम्बर से दूर रहकर रत्नत्रय मार्ग पर आरूढ़ रह आत्मकल्याण कर रहे हैं, वहाँ दूसरी ओर वे अपनी अनुपम साहित्यिक रचनाओं से हिन्दी और संस्कृत साहित्य के भण्डार को भर रहे हैं। मूलत: कन्नड़ भाषी होने पर भी उन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत में अनेक उच्च स्तरीय रचनाएँ की हैं। 'नर्मदा का नरम कंकर, 'डूबो मत लगाओ डुबकी, 'तोता क्यों रोता ?', 'मूकमाटी' आदि उनकी हिन्दी में अनूठी काव्य रचनाएँ हैं। 'समयसार', 'प्रवचनसार', 'नियमसार', 'समण सुत्तं' आदि ग्रन्थों के हिन्दी पद्यानुवाद उन्होंने किए हैं । संस्कृत एवं हिन्दी में अनेक शतकों की उन्होंने रचना की हैं। उनके प्रवचनों के अनेक नामों से संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी लेखनी निरन्तर गतिशील है ।
उनकी रचनाओं में शीर्ष स्थान प्राप्त रचना 'मूकमाटी' हिन्दी काव्य साहित्य में एक अनुपम उपलब्धि है । इसे महाकाव्य, खण्डकाव्य अथवा प्रतीक काव्य कहा जाए या अन्य कुछ, यह काव्य मर्मज्ञों का विषय है । महाकाव्य के समस्त लक्षण भले ही इसमें घटित नहीं होते पर यह महाकाव्य से किसी भी प्रकार कम नहीं है । ४८८ पृष्ठों का यह विशाल काव्य महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक काव्य, गीतिकाव्य आदि सभी के गुणों को अपने में समाए हुए है, यदि ऐसा कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी ।
महाकाव्य के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक महत्त्वपूर्ण घटना के प्रारम्भ में जिस प्रकार प्रकृति चित्रण होता है, वह 'मूकमाटी' में भी अनेक घटनाओं की पृष्ठभूमि में है । एक चित्र प्रारम्भ में ही देखिए :
" सीमातीत शून्य में / नीलिमा बिछाई, और " ...इधर नीचे / निरी नीरवता छाई,
निशा का अवसान हो रहा है / उषा की अब शान हो रही है।" (पृ. १ )
कुम्भकार जब मिट्टी लेने नदी तट पर जाता है, तब सरिता की सुषमा देखिए :
"इधर··· सरिता में / लहरों का बहावा है, / चाँदी की आभा को जीतती, उपहास करती-सी / अनगिन फूलों की / अनगिन मालायें तैरती- तैरती / तट तक आ / समर्पित हो रही हैं
माटी के चरणों में, / सरिता से प्रेरित वे ।” (पृ. १९-२० )
इस प्रकार अनेक स्थल प्रकृति-चित्रण से भरे पड़े हैं।