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मूकमाटी-मीमांसा :: 461
कुम्भकार, माटी की विकास-कथा, सागर, बड़वानल, धन आदि के प्रलयंकर दृश्यों के माध्यम से काव्यमहारथी महाराजश्री ने अपनी दार्शनिक आत्मा का वशीकरणी-संगीत हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। कहा जाता है कि 'मानो तो देव, नहीं तो पत्थर'। 'मूकमाटी' मुझे यह कहने को विवश कर रही है कि पढ़ो और गहरे डूबो तो अमूल्य धरोहर, वरना बस एक पुस्तक'। रख लीजिए शो-केस में और कर लीजिए शौक पूरा।
'मूकमाटी' की भूमिका स्वरूप प्रस्तवन' में लक्ष्मीचन्द्र जैन ने कहा है : “गुरु तो प्रवचन ही दे सकते हैं, 'वचन' नहीं।" आत्मा का उद्धार तो अपने ही पुरुषार्थ से हो सकता है । और अविनश्वर सुख वचनों से बताया नहीं जा सकता। वह तो साधना से प्राप्त आत्मोपलब्धि है । खण्ड चार ‘अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' का केनवास तो अति विशाल है। "इधर धरती का दिल/दहल उठा, हिल उठा है" (पृ.२६९) से प्रारम्भ कर इस चतुर्थ खण्ड का अन्त हुआ
"...इन/शब्दों पर विश्वास लाओ,/हाँ , हाँ !! विश्वास को अनुभूति मिलेगी/अवश्य मिलेगी/मगर मार्ग में नहीं, मंज़िल पर !/और/महा-मौन में/डूबते हुए सन्त..
और माहौल को/अनिमेष निहारती-सी/''मूकमाटी।" (पृ. ४८८) 'मूकमाटी' के शब्द शिल्प, जीवन दर्शन, अनेकान्त दृष्टि से समझने की सामर्थ्य, शब्दालंकार, अर्थालंकार, अर्थ के अछूते और अनूठे आयाम, कविता का अन्तरंग स्वरूप, साहित्य के आधारभूत सिद्धान्तों का दिग्दर्शन, नव रसों का प्रतिपादन, तत्त्व दर्शन, आहार-दान सहित अनेक प्रक्रियाएँ, तत्त्व-चिन्तन, लौकिक एवं पारलौकिक जिज्ञासाओं तथा अन्वेषणों की अमर धरोहर, सामाजिक दायित्वबोध, काव्य की मर्यादा एवं गरिमा, मन्त्र एवं विद्या की आधारभित्ति, अंकों तथा बीजाक्षरों का चमत्कार, आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र, अध्यात्म का सागर आदि होने से क्या कुछ नहीं है इसमें ! मेरे जैसा अबोध सहज ही तो नहीं समझ सकता 'मूकमाटी' को।
आचार्यश्री विद्यासागरजी को विनत प्रणाम निवेदित कर अपने कथन की इति इन पंक्तियों के साथ करता हूँ:
'की किरणें
पद-दलित मूकमाटी पर मोहक महाकाव्य, हे महासन्त ! यह मात्र तुम्हीं गुन सकते हो। आपाधापी, जंजाल, विकट विद्रूपताएँ दुख के ये सप्तक तार, तुम्हीं सुन सकते हो ।।१।।
उपलब्धि अनोखी है यह कविता कानन की, तप, त्याग और चिन्तन की यह रस धारा है। आयाम नए, नूतन शैली में, नया सृजन,
मन्दिर है यह, मस्जिद है औ' गुरुद्वारा है ।।२।। है मुक्त-छन्द में, अलंकार, रस रोचकता, अध्यात्म और दर्शन का यह तो है सागर ।