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458 :: मूकमाटी-मीमांसा
४. अर्द्धमागधी प्राकृत साहित्य के कथानकों के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्यों के कथानक का अनुशीलन ।
५. पैशाची प्राकृत साहित्य के कथा-प्रयोगों के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य के कथा प्रयोगों का अनुशीलन । उक्त शोध योजनागत विषय एक ही रचनाकार की समस्त तथा एकल काव्य कृतियों के सन्दर्भ में विभिन्न अध्ययन पद्धतियों की दृष्टि से सम्पन्न कराए तथा किए जा सकते हैं।
प्राकृत साहित्य की तरह 'अपभ्रंश साहित्य के (उक्त भेदों के) सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य के कथानक का मूल्यांकन' किया जा सकता है । इसी प्रकार 'हिन्दी तथा उसकी जनपदीय बोलियों में विरचित काव्य-कृतियों के कथा-प्रयोगों के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य के कथा-प्रयोगों का विवेचन' उक्त अध्ययन पद्धतियों की दृष्टि से किया जा सकता है।
हिन्दी साहित्य की तरह भारत की विभिन्न भाषाओं तथा बोलियों में विरचित साहित्य के कथा-प्रयोगों के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य के कथा-प्रयोगों का मूल्यांकन' किया जा सकता है।
काव्य रूपों की दृष्टि से भी 'मूकमाटी' महाकाव्य का मूल्यांकन सम्भव है। भारतीय काव्य-रूपों के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य के रूप का निर्धारण' यह भी शोध योजना का विषय हो सकता है।
रस प्रयोग, प्रक्रिया तथा प्रभाव की दृष्टि से भी 'मूकमाटी' महाकाव्य का शोधस्तरीय मूल्यांकन किया जा सकता है । रचनाकार ने 'मूकमाटी' महाकाव्य में नवरसों का तात्त्विक विवेचन किया है । प्रभाव तथा लोकहित की दृष्टि से रचनाकार ने शान्त रस को श्रेष्ठतम स्वीकार किया है । 'मूकमाटी' महाकाव्य में अंगीरस के रूप में लोकरस, प्रकृति रस तथा शान्त रस स्वीकारे जा सकते हैं। भारतीय तथा भारतीयेतर साहित्य में इस प्रयोग के सन्दर्भ में 'मूकमाटी' महाकाव्य की रस-योजना का अध्ययन की विभिन्न पद्धतियों की दृष्टि से मूल्यांकन किया जा सकता है।
___ विचार तत्त्व अथवा दर्शन की दृष्टि से भी 'मूकमाटी' महाकाव्य का शोधस्तरीय मूल्यांकन सम्भव है । 'मूकमाटी' महाकाव्य में सामाजिकता, 'मूकमाटी' महाकाव्य में दार्शनिकता, 'मूकमाटी' महाकाव्य में राजनीति तत्त्व, 'मूकमाटी' महाकाव्य में नीति तत्त्व, 'मूकमाटी' महाकाव्य में परम्परा तथा आधुनिकता आदि अनेक शोध विषय सम्भव हैं। रचनाकार ने आतंकवाद, अलगाववाद,भौतिकतावाद, कूटनीति तथा अन्तरिक्ष युद्ध आदि को मानव जाति के लिए घातक माना है । अत: 'मूकमाटी' महाकाव्य में जीवन-मूल्य शोध विषय पर भी कार्य किया जा सकता है। भाषा शोध की दृष्टि से उक्त काव्यकृति का शब्द प्रयोगों की दृष्टि से, भाव-विचार तथा भाषा सन्तुलन की दृष्टि से भी उक्त मूल्यांकन किया जा सकता है। ध्वनि प्रयोग शब्द रचना,पद-रचना, वाक्य-विन्यास तथा आर्थी प्रयोग के अतिरिक्त शब्दकोशीय तथा शैली वैज्ञानिक आदि दृष्टियों से भी उक्त महाकाव्य का मूल्यांकन किया जा सकता है। उक्त काव्यकृति कथ्य प्रयोग की दृष्टि से ही मौलिक नहीं है अपितु अभिनव अर्थबोधक भाषिक प्रयोगों की दृष्टि से भी सर्वथा नवीन तथा मौलिक है।
कला तत्त्व की दृष्टि से उक्त रचना का शोधस्तरीय मूल्यांकन निम्नांकित रूप में सम्भव है :
१. उपमान-प्रयोग की दृष्टि से । २. बिम्ब-विधान की दृष्टि से। ३. प्रतीक-विधान की दृष्टि से।
४. छन्द-विधान की दृष्टि से।
आचार्य मुनि विद्यासागर चिन्तन, मनन तथा कल्पना- सभी स्तरों पर अद्वितीय स्थान रखते हैं। उन्होंने इस महाकाव्य में परम्परागत उपमानों का कम अपतुि नए उपमानों का प्रयोग अधिक किया है । जीवन के सभी क्षेत्रों तथा