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________________ 'मूकमाटी': माटी के माध्यम से जीवन-दर्शन राजेन्द्र नगावत माटी मानव का आधार, आकार व परिणति है । माटी ओढ़न है, माटी बिछावन है । एक तरह से माटी ही मनुष्य की पहचान है। माटी मूक है परन्तु रचयिता ने इसे एक ऐसी गूंजन से परिपूर्ण कर दिया है कि वह जीवन के समग्र दर्शन की अनुगूंज बन गई है । बहुत अधिक गूढ़ता न देकर, सहज दृष्टान्तों, बिम्बों, रूपकों के द्वारा सरल शब्दों में परिवेश का परिवेशन किया है। प्रथम खण्ड में माटी का आलोड़न-विलोड़न है, दूसरे में उत्पत्ति के संकेत तो तीसरे में उपार्जन । पर्वत के आरोहण के ये तीन शिविर सम्पन्न कर चतुर्थ खण्ड में शिखर आरोहण है । इसमें तप्त स्वरूप व परिणति का चित्रण प्रथम खण्ड में प्रथमत: संकेत है : "प्रभात में कुम्भकार आयेगा/पतित से पावन बनने,/समर्पण-भाव-समेत उसके सुखद चरणों में/प्रणिपात करना है तुम्हें।" (पृ. १६-१७) तब उभरती पीड़ा के प्रति यह कथन द्रष्टव्य है : "पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है/और पीड़ा की इति ही/सुख का अथ है।" (पृ. ३३) इसी को और आगे ले जाते कहा गया है : “काया को कृश करने से/कषाय का दम घुटता है।" (पृ. ८७) द्वितीय खण्ड में सर्जनात्मक स्वर है : "मान-घमण्ड से अछूती माटी/पिण्ड से पिण्ड छुड़ाती हुई कुम्भ के रूप में ढलती है।" (पृ. १६४) तो मोक्ष की ओर इंगित करते ये शब्द भी हैं : "अपने को छोड़कर/पर-पदार्थ से प्रभावित होना ही मोह का परिणाम है/और/सब को छोड़कर अपने आप में भावित होना ही/मोक्ष का धाम है।" (पृ. १०९-११०) तृतीय खण्ड में पुरुषार्थ का संकेत है : “परिश्रम करो/पसीना बहाओ/बाहुबल मिला है तुम्हें करो पुरुषार्थ सही।" (पृ. २११-२१२) परीषह से भरी साधना का आह्वान भी :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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