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________________ अपने पतिदेव / चन्द्रमा के पीछे-पीछे हो / छुपी जा रहीं .. कहीं" सुदूर "दिगन्त में / दिवाकर उन्हें / देख न ले, इस शंका से ।” (पृ.२) तारिकाओं को अबलाओं के रूप में व चन्द्रमा को उनके प्रियतम के रूप में चित्रित किया गया है। यह कैसा मधुर - मनोरम चित्र है। उपदेशात्मक रूप में भी प्रकृति का दर्शन होता है : परम्परागत शैली के कहीं तो कहीं वसन्त का । किए हैं। "हंस - राजहंस सदृश / क्षीर-नीर विवेक-शील !” (पृ. ११३) आधार पर षड्-ऋतु वर्णन भी परिलक्षित होता है - ग्रीष्म कहीं तो कहीं शीत का, वर्षा इस प्रकार ऋतुओं के अनुरूप भी प्रकृति के उग्र, सौम्य, शान्त व मनोहारी चित्र रेखांकित ग्रीष्म की विभीषिका देखें : D 0 मूकमाटी-मीमांसा : : 451 "यहाँ जल रही है केवल / तपन तपन" तपन !” (पृ. १७८) "जला हुआ जल वाष्प में ढला । " (पृ. १९०) जहाँ ग्रीष्म व सूर्य की अग्नि से जल वाष्प में परिवर्तित हो रहा है, वहीं वर्षा ऋतु के आगमन पर जलद के स्वयं जल बन कर बरसने की कल्पना शीतलता प्रदान करती है : “जलद बन जल बरसाता रहा । " (पृ. १९१ ) यूँ तो शीतकाल की बात ही निराली है । किन्तु शीत के आधिक्य से मनुष्य तो क्या पेड़-पौधे भी नहीं बचे हैं। हिमपात ने सर्वत्र सफेदी ला दी है : " शीत-काल की बात है / अवश्य ही इसमें / विकृति का हाथ है पेड़-पौधों की/डाल-डाल पर / पात-पात पर / हिम - म-पात है ।" (पृ. ९०) जहाँ शीतकाल ने डाल-डाल को हिमपात के आवरण में ढक दिया है वहीं शिशिर के आगमन के साथ लतालतिकाएँ शिशिर के छुवन से पीली पड़ती जा रही हैं : “लता- लतिकायें ये,/ शिशिर - छुवन से पीली पड़ती-सी पूरी जल - जात हैं।” (पृ. ९० ) प्रकृति के विभिन्न उपादान, यथा- वृक्ष, सरि, सरिता, सागर, मेघ, आकाश, पक्षी, सूर्य, चन्द्रमा, तारे, वर्षा, पुष्प, पल्लव एवं द्रुम आदि का वर्णन पाठक को प्रकृति की क्रोड़ में ही मानों ले चलता है। इसके अतिरिक्त कुछ भौगोलिक तथ्यों, वैज्ञानिक सत्यों तथा प्राकृतिक यथार्थों का चित्रण कलात्मकता से कर उसे ग्राह्य बनाया है । सूर्य की तपन से सागर का उबलना तथा चन्द्राकर्षण से ज्वार आने के तथ्य को कैसा काव्यमय ढाँचा प्रदान किया है। द्रष्टव्य है सागर की मानसिकता :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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