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446 :: मूकमाटी-मीमांसा
चतुर्दिक् कुंकुम लगाया जाता है। मलयाचल के चारु चन्दन से मांगल्य प्रतीक स्वस्तिक का अंकन किया जाता है । उसे कश्मीर केसर मिश्रित चन्दन से सुसज्जित किया जाता है । आज माटी अपने भाग्य परिवर्तन पर अवाक् रह जाती है। अपने भाग्य की सराहना करते नहीं थकती। सुसज्जित घट गृह की शोभा बढ़ाता एक चौकी पर सुरक्षित रख दिया जाता है। आचार्यशिरोमणि ने कितनी सुन्दरता से भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को उजागर किया है।
इधर महासेठ के यहाँ आहारार्थ महासन्त का शुभागमन होता है । विभिन्न रसाहारों से उनका स्वागत किया जाता है। श्रद्धा सहित उनके समक्ष विभिन्न मूल्यवान् धातुओं, यथा- स्वर्ण, रजत, कांस्य इत्यादि से निर्मित कलशों में नाना प्रकार के मधुर रस आपूरित कर रखे जाते हैं।
किन्तु योगी वीतरागी हैं। उन्हें इन सांसारिक रस-गन्धों में आसक्ति नहीं है । अत: वे नाना मूल्यवान् धातु निर्मित, रसापूरित सभी घट अस्वीकार कर देते हैं । आहार प्रारम्भ करने के लिए वे माटी के कलश को चुनते हैं। आहारोपरान्त उपदेश-प्रवचन के पश्चात् वे प्रस्थान करते हैं।
___इधर अन्य धातुओं से निर्मित विभिन्न पात्रों में अपमान व ईर्ष्या-द्वेष की भावनाओं का सूत्रपात होता है । वे द्वेष व बदले की भावना से प्रेरित हो षड्यन्त्र रचते हैं।
स्वर्ण कलश, रजत कलश आदि नाना मूल्यवान् धातुओं से निर्मित कलश व अन्य पात्र कुपित होकर सेठ, उसके आत्मीय स्वजन व उसके प्रिय पात्र माटी के घट के विनाश की कुटिल योजना बनाते हैं। आचार्यशिरोमणि ने आधुनिक काल में सर्वत्र व्याप्त आतंकवाद का बड़ा सटीक चित्र पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। योजना बनती है और यहीं से आतंकवाद का बीजारोपण होता है । आतंकवादी प्रवृत्ति विनाशकारी है । इस काव्य में आज के युग में सर्वत्र सिर उठाए, फन मारती इस अराजकतापूर्ण स्थिति, विध्वंसात्मक, विनाशकारी प्रवृत्ति का चित्रण इतना सजीव बन पड़ा है कि पाठक स्वयं को इस स्थिति और अनुभूति से अलिप्त नहीं महसूस कर पाता।
रात्रि के गहन अन्धकार में जब विनाश की योजना बन रही थी, उस आपात्काल में माटी का घट अपने उपकारी महासेठ के परिवार के लिए सजग प्रहरी-सा जाग रहा था। सारी की सारी कुमन्त्रणा सुन वह चैन से न बैठ सका । सेठ के प्रति अपनी भक्ति व निष्ठा, उत्तरदायित्व व सुरक्षा की भावनाओं, स्नेह व कृतज्ञता के वेग से प्रेरित होकर वह अपनी सदाशयता, मेधा व सद्बुद्धि से एक युक्ति खोज ही निकालता है।
जिस घर में आतंकवाद विषवृक्ष-सा सर्वत्र अपनी शाखाएँ पसार रहा हो, विषैले सर्प-सा विष वमन कर रहा हो, वहाँ से पलायन करना ही सुरक्षा का एकमात्र उपाय रह जाता है। अत: घट सबके सोने पर सेठ व उसके परिवार को उठाकर यथास्थिति से अवगत कराता है । बड़ी सतर्कता से वह यह समाचार सेठ के कानों तक पहुंचाता है, साथ ही उससे बचने का उपाय भी सुझाता है । गृहत्याग ही सुरक्षा का एकमात्र उपाय है। उसकी नेक सलाह मान सभी दबे पाँव घर से निकल पड़ते हैं। उस समय जब आतंकवाद षड्यन्त्र रचने की थकान से थककर बेखबर गहन निद्रा में सोया होता है । उन्हें कानोंकान खबर हुए बिना सेठ, उसका प्रिय घट व परिवार पलायन करते हैं। घट उनका पथ-प्रदर्शक बनता है। आगे घट है, पीछे है सेठ व उसका परिवार । नगर, पथ, वन-उपवन, पर्वत, वृक्ष, नदी-नाले पार करते हुए वे सरिता के पावन तट पर पहुंचते हैं।
किन्तु, तब तक आतंकवाद की गहन निद्रा भी टूट चुकी होती है । वह भी घर से निकल उनका पीछा करता है । आचार्यश्री ने बड़ा ही रोमांचक चित्र खींचा है। घटनाएँ तीव्रगति से कथा को अग्रसर करती हैं।
इधर सेठ व घट के लिए सरित् पुलिन पर पहुँचकर समस्या आ खड़ी होती है। सेठ व उसका परिवार तैरना नहीं जानता । अन्त में घट के मुख पर रस्सी बाँधकर सेठ व उसका परिवार जलचर प्राणियों की सहायता से नदी पार करता है। और इस प्रकार कठिन परिश्रम के उपरान्त सभी तट पा ही लेते हैं।