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________________ 440 :: मूकमाटी-मीमांसा भोजन के पश्चात् महासन्त वन की ओर प्रस्थित हुए। उन्हें नसिया जी तक छोड़ कर नगर सेठ अपने आवास पर लौट आया। घर आकर उसे अनुभव होता है : “कुम्भ के विमल - दर्पण में / सन्त का अवतार हुआ है।” (पृ. ३५४) कुम्भ के कारण नगर सेठ का जीवन परिवर्तित हो जाता है । वह भोग-रोग से मुक्त होता है । ज्वर के आतंक छूट जाता है। आतंकवाद के पंजे से मुक्त हो सपरिवार भव नदी से पार उतरता है । यह है 'मूकमाटी' का संक्षिप्त कथानक । सन्त कवि श्री विद्यासागर ने इस कथा को काव्यबद्ध कर जन-मानस के समक्ष प्रस्तुत करके श्रमण संस्कृति के महत्त्व को प्रतिपादित किया है । वस्तुत: 'मूकमाटी' महाकाय काव्य एक प्रतीकात्मक रचना है । मंगल घट के रूप में कवि ने 'श्रमण' जीवन को रेखांकित किया है जो अपने गुरु का साहचर्य और निर्देश पाकर जन-कल्याण की ओर उन्मुख होता है । यह भावना इतनी प्रबल होती है कि वह सभी दैहिक कष्टों को सहकर भी अपने संकल्प पर अटल रहता है । कथानक की सम्पुष्टि के लिए कवि ने अनेक प्रासंगिक बोध कथाएँ भी संयोजित की हैं, जिनका अपना महत्त्व है । 'मूकमाटी' का सृजन एक विशेष संस्कृति के प्रतिपादन की प्रेरणा से हुआ है । प्रतिपादन की बाध्यता के कारण कथानक की गति जाने-अनजाने बौद्धिक भूलभुलैयाँ में खो जाती है । कथानक का प्रारम्भ और समापन का स्थान एक ही है किन्तु इस अन्तराल में मूकमाटी जीवन और जगत् के विविध प्रसंगों से साक्षात्कार करती हुई अपनी यात्रा पूर्ण करती है। इस यात्रा में उसे समय और सृष्टि के सत्य का बोध हुआ और यह सत्य ही सौन्दर्य है । इसके साथ ही है शिवम् - जो इस काव्य की आत्मा है : “यहाँ‘“सब का सदा/जीवन बने मंगलमय / छा जावे सुख-छाँव, सबके सब टलें - / अमंगल - भाव !" (पृ. ४७८ ) पृष्ठ ४०. पर के प्रति---- भगवान से प्रार्थना करता है कि
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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