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438 :: मूकमाटी-मीमांसा
"पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है/और
पीड़ा की इति ही/सुख का अथ ।” (पृ. ३३) कुम्भकार माटी खोद, उसे गदहे पर लादकर, उपाश्रम ले जाता है । राह में माटी की दृष्टि गदहे की पीठ पर पड़ती है। वह छिल गई है उसके खुरदरे स्पर्श से। माटी पीड़ा से भर उठती है तथा पश्चाताप से रो पड़ती है। उसमें करुणा का आविर्भाव होता है । दया का यह विकास ही मोक्ष है।
माटी की यात्रा समाप्त होती है उपाश्रम में । वहाँ उसका संशोधन होता है । रूप परिवर्तित होता है । उसे नव जीवन मिलता है।
यहीं कुम्भकार के ज्ञान और अन्वेषण वृत्ति को कवि ने कथा में बोध और शोध के माध्यम से प्रस्तुत किया है। मिट्टी के उपयोग और प्रयोग का बोध कुम्भकार के मन में विकलता जाग्रत करता है किन्तु वहीं विकलता-अतृप्ति का शमन होता है शोध से । माटी से घट का निर्माण, वस्तुत: बोध से शोध की ओर प्रस्थान यानी ज्ञान से मुक्ति की ओर की यात्रा ही है।
कुम्भकार घट-निर्माण की प्रक्रिया में निमग्न होता है । पाँवों से माटी को गूंधना है। माटी मूक है । वह दृढ़ता के साथ सब कुछ सहती है । कवि ने माटी को बोध मार्ग से निकालकर शोध मंच पर ला खड़ा किया है, किन्तु मूक ! यह मूकता एकाग्रता का प्रथम चरण है । यही परीक्षा-स्थल है । इसमें सफल होना दुष्कर है।
माटी मन्थन के साथ साथ शिल्पी का मानस-मन्थन भी चलता है, फलतः कथा-प्रवाह की गति मन्द हो जाती है। तब कथा गौण हो जाती है तथा मन्थन से उत्पन्न नवनीत तैरने लगता है सतह पर, काव्य रस के रूप में। कवि रस विवेचना में डूब जाता है।
शान्त चित्त कुम्भकार की रौंदन क्रिया समाप्त होती है। फिर वह माटी को चाक पर चढ़ाता है । उसकी दृष्टि में उभरता है कुम्भ का चित्र और माटी आकार ग्रहण करने लगती है :
"मान-घमण्ड से अछूती माटी/पिण्ड से पिण्ड छुड़ाती हुई कुम्भ के रूप में ढलती है/कुम्भाकार धरती है
धृति के साथ धरती के ऊपर उठ रही है।" (पृ. १६४) शिल्पी माटी की नव निर्मित आकृति रूप घट को धरती पर उतारता है मनोयोग पूर्वक । दो-तीन दिन पश्चात शिल्पी ने उसे जाँचा, परखा और सुगढ़ किया । फिर उसने घट को मंगल घट के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु उस पर समष्टि कल्याण के सूत्र चित्रित किए। ये सूत्र हैं गणितीय । कारणत: कथा फिर अटक जाती है किन्तु यह न अटकाव है और न भटकाव, यह है भ्रमण लहरदार । इसके पश्चात् पशु आकृतियों का अंकन, उनका तात्त्विक विवेचन, फिर बीजाक्षर तो कुछ काव्य पंक्तियाँ-जिनका अपना विशिष्ट अर्थ है । कवि यही तो चाहता है कि यह घट सामान्य घट नहीं है, विशिष्ट घट है- मंगल घट।
गीली मिट्टी से निर्मित घट-अधसूखे घट पर मांगलिक मण्डन के पश्चात् कुम्भकार सूखने के लिए उसे धूप में रख देता है। फिर कारणवश दो-चार दिवस के लिए प्रवास पर चला जाता है। उसकी अनुपस्थिति में मेघ आते हैं, उस अधपके घट पर मुक्ता की वर्षा करते हैं। लोगों के लिए यह घटना चर्चा का विषय बन जाती है । चर्चा चलते-चलते जा पहुँचती है राजदरबार में।
राजा सभासदों सहित जा पहुँचता है कुम्भकार के यहाँ । और आँगन में बिखरे मोतियों को बटोरने का निर्देश