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________________ 'मूकमाटी' : जीवन-शाला की खुली किताब डॉ. (श्रीमती) नीलम जैन कालजयी, प्रासंगिक एवं हृदयस्पर्शी महाकाव्य 'मूकमाटी' मौनप्रिय, साधक, आत्मनियन्ता, तपोरत कर्मशिल्पी जगत्-वन्द्य आचार्य विद्यासागरजी के अनुभवी, गहन मन्थन की स्वानुभूत अनुभूतियों की एक ऐसी रचना है, जो जड़ के माध्यम से चेतन पारस से स्पर्शित होकर मणिवत् प्रकट हुई है। धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म के स्वर नवीनतम छायावादी और रहस्यवादी ढंग से मुखरित होकर सामान्य जन-जन के सोच और भावों को निजत्व में ढाल कर प्रभावी ढंग से इसमें शब्दायित हुए हैं। मूक, नि:स्वर, जड़ माटी--जिसे जो चाहे पैरों तले रौंद दे--वही माटी जब किन्हीं संवेदनशील, सहृदय, सक्षम हाथों की शोभा बनती है तब वही धूल साधना, आराधना की उत्कट भावना से मंगल कलश के रूप में पूज्य हो जाती है, शवत्व शिवत्व बन जाता है और प्रस्तर भगवान् । इस प्रकार कर्म-श्रम के राजपथ की शोभा के सम्मुख हर शीश नत होता है । ____ आचार्यश्री की 'मूकमाटी' एक सन्देश मात्र नहीं, एक प्रायोगिक एवं व्यावहारिक कृति है एवं तपस्या और निमित्त की महिमावली है । अकाट्य तर्क है जीवन का, दर्पण है मानव मन का । संसार की अच्छी सुरंग में भटकने, खोने, रोने, सिसकने वालों के लिए जीवनदायिनी संजीवनी माटी को आचार्यप्रवर की दिव्य लेखनी ने सँभलने, पाने, हँसने तथा बसने का पथ बतलाया है । सम्पूर्ण जीवन शैली और जैन दर्शन को आगम सम्मत दृष्टिकोण से नीरस विषय को भी सरस बनाकर जिस काव्यात्मक ढंग से इसमें प्रस्तुति हुई है वह अनन्य, अश्रुतपूर्व व अभिन्न है। वर्तमान में अराजकता, असन्तोष, नैतिक अवमूल्यन, भ्रष्टाचार, दमन, शोषण, उत्पीड़न के दुर्दान्त एवं खतरनाक युग में आत्मानुशासन के माध्यम से आत्मोत्थान की प्रदीपिका समुन्नत, विकसित, सभ्य, शिष्ट, शुभ्र, सान्द्र जीवन के सम्पन्न और समर्थ मुहावरे के रूप में प्रकटित होती है । यह जीवन-निर्माण संकलन के हाशिए की कतरन नहीं, पृष्ठ-दर-पृष्ठ की जीवन्त सामग्री है। एक प्रेरणा बिन्दु : “किन्तु बेटा!/इतना ही पर्याप्त नहीं है। आस्था के विषय को/आत्मसात् करना हो उसे अनुभूत करना हो/तो/साधना के साँचे में स्वयं को ढालना होगा सहर्ष!/पर्वत की तलहटी से भी हम देखते हैं कि/उत्तुंग शिखर का/दर्शन होता है,/परन्तु चरणों का प्रयोग किये बिना/शिखर का स्पर्शन/सम्भव नहीं है !" (पृ. १०) और इस सत्य से साक्षात्कार करते ही आस्था स्थाई तथा दृढ़ा, दृढ़तरा, दृढ़तमा हो जाती है और इस प्रकार तैयार हो जाता है नींव का इस्पाती सूत्रपात, विश्लेषण व विवेचन का प्रादुर्भाव । और इस प्रकार प्राप्त हो जाती है एक विशिष्ट दृष्टि, जिससे हम स्वयं अपने दर्पण व दीपक दोनों ही बन जाते हैं। एक पक्ष एवं चतुर लक्ष्यभेदक के शर-सन्धान ति 'मकमाटी' अपनी रचना-प्रक्रिया में कहीं कोई उपकरणात्मक साजो-सामान एकत्र किए बिना एक सशक्त विद्या और वरदान के रूप में वह बीज पाठक के मन में बोती है जो जड़, तना, पत्ता, शाखा, फूल और फल से युक्त सम्पूर्ण वृक्ष रूपी सोच को आधार देता है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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