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424 :: मूकमाटी-मीमांसा
आमूल मिट जाना ही/मोक्ष है।" (पृ. ४८६) परिश्रम का फल व्यंजना के माध्यम से इस प्रकार मुखरित हुआ है :
"और, सुनो !/मोठे दही से ही नहीं,/खट्टे से भी
समुचित मन्थन हो/नवनीत का लाभ अवश्य होता है।" (पृ. १३-१४) मानव-जीवन में संयम के महत्त्व को संक्षेप में किन्तु चमत्कारिक ढंग से प्रस्फुटित किया है :
“संयम के बिना आदमी नहीं/यानी/आदमी वही है
जो यथा-योग्य/सही आदमी है।" (पृ. ६४) महिला शब्द के व्युत्पत्तिपरक अनेक अर्थ किए हैं। एक अलौकिक अर्थ प्रस्तुत है :
"जो संग्रहणी व्याधि से ग्रसित हुआ है/जिसकी संयम की जठराग्नि मन्द पड़ी है, परिग्रह-संग्रह से पीड़ित पुरुष को/मही यानी
मठा-महेरी पिलाती है,/महिला कहलाती है वह.!" (पृ. २०२-२०३) इसी प्रकार स्त्री, दुहिता, सुता आदि शब्दों के अर्थों को ध्वनित कर नारी के प्रति आदर भाव व्यक्त किया है।
किंबहुना ? विस्तरेण अलं-जो कुछ कहा गया है वह, जो कुछ कहा जाना चाहिए-की तुलना में बहुत ही कम है। इतना-सा कह देना कृति के प्रति न्याय नहीं है किन्तु सागर को गागर में तो भरा नहीं जा सकता। कुशल से कुशल गोताखोर भी सागर तल की गहराई से समस्त रत्नराशि को निकाल नहीं सकता फिर रहा किनारे बैठ' वाले की तो हस्ती ही क्या है ? हृदय ने जो अनुभव किया है उसे जड़ लेखनी लिख नहीं सकती । अस्तु ।
पृष्ठ ३०९ फिर बायें हाथ में कुम्भ लेफर...... प्राय: इसी पर टिकता है।