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________________ हिन्दी का आधुनिक काव्य : 'मूकमाटी' महेन्द्र कुमार 'मानव' बहुधा मुनि कवि नहीं होते और कवि मुनि नहीं होते। वैसे प्राचीन जैन वाङ्मय में भी इसके अनेक अपवाद मिल जाएँगे। अनेक जैन आचार्यों ने शास्त्रों की रचना की है और अनेक आचार्यों ने भावप्रवण होकर स्तोत्रों की रचना की है । लेकिन आचार्य विद्यासागर का अपवाद अपने ढंग का अनूठा और परम्परा से हटकर है । वे मुनि भी हैं और कवि भी। उन्होंने केवल भगवान् की स्तुतियाँ नहीं गाई हैं अपितु उन्होंने सारी उपमाएँ, अलंकार सांसारिक वस्तुओं से ही लिए हैं, लेकिन उनकी दृष्टि आध्यात्मिक है। सांसारिक व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं को भौतिक दृष्टि से देखता है तो आध्यात्मिक व्यक्ति सांसारिक पदार्थों को आध्यात्मिक दृष्टि से देखता है। सांसारिक व्यक्तियों का इश्क मिजाज़ी होता है, आध्यात्मिक व्यक्तियों का इश्क हक़ीक़ी होता है। पतंजलि ने लिखा है कि अभिनेताओं (मैं उनमें 'कवि' भी जोड़ना चाहूँगा) का चरित्र शंकाशील होता है । मुझे लगता है कि अभिनेता और कवि भावुकता में बहते हैं और संसार जिसको चरित्र' कहता है, उसकी परवाह नहीं करते। आचार्यजी के साथ यह दूसरा अपवाद है । वे कवि हैं और कवि नहीं भी यानी दूसरे कवियों की तरह नहीं । माटी से शरीर का बोध होता है। अंग्रेज़ी में कहावत है- “For dust thou art, and unto dust shart thou return."मिट्टी की काया है और मिट्टी में मिल जाती है। लेकिन इस महाकाव्य में 'माटी' को 'आत्मा' का रूप बनाया गया है। ___ 'मूकमाटी' को सन्त कवि ने चार खण्डों में विभक्त किया है। पहला खण्ड माटी की उस प्राथमिक दशा के परिशोधन की प्रक्रिया को व्यक्त करता है, जहाँ वह पिण्ड रूप में कंकर कणों से मिली-जुली अवस्था में है । दूसरे खण्ड में माटी को खोदने की प्रक्रिया में कुम्भकार की कुदाली एक काँटे के माथे पर जा लगती है, उसका सिर फट जाता है, वह बदला लेने की सोचता है । यह देख कुम्भकार को अपनी असावधानी पर ग्लानि होती है । इस खण्ड में सन्त-कवि ने साहित्य-बोध को अनेक आयामों में अंकित किया है । तीसरे खण्ड में कुम्भकार ने माटी की विकास-कथा के माध्यम से पुण्य-कर्म के सम्पादन से उपजी श्रेयस्कर उपलब्धि का चित्रण किया है। इस खण्ड में 'द्विज' शब्द सार्थक बनता है। 'मेघ' से 'मेघ-मुक्ता' का अवतार होता है । कच्चा हीरा तराश कर समझदार हीरा बनाया जाता है । चौथे खण्ड में कुम्भकार ने 'घट' को रूपाकार दे दिया है। अब उसे अवा में तपाने की तैयारी है। अग्नि-परीक्षा का समय आ गया है। बड़े-बड़े सिद्ध पुरुष अग्नि-परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाते हैं। महात्मा गाँधी को अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेनी पड़ी। वे अपने साथ अपनी भतीजियों को निर्वस्त्र सुलाते थे और अपने मन की परीक्षा लेते थे कि उनका ब्रह्मचर्य अडिग है या नहीं। आचार्यजी महान विद्वान हैं और उन्हें साहित्य का. जैन दर्शन का, मन्त्र विद्या का और छन्द शास्त्र का गम्भीर ज्ञान है, जो उनकी रचना में प्रतिबिम्बित होता है । रचना शुद्ध खड़ी बोली में वर्तमान की वस्तु स्थितियों एवं घटनाचक्रों में से गुज़रती है, जिसके कारण इसे हिन्दी के आधुनिक काव्यों में समाविष्ट किया जा सकता है। ___ यद्यपि रचना में आचार्यजी की जैन दर्शन सम्बन्धी मान्यता बौद्धिक है, तथापि उसमें उनकी अपनी आध्यात्मिक अनुभूति जुड़ी हुई है। इसके कारण रचना बहुत उच्च स्तर की बन गई है। उच्च आत्मा से निकली रचना उच्च होती है। लेकिन ऐसा भी देखा गया है कि कभी-कभी निम्न आत्मा से निकली रचना भी उच्च होती है और उच्च आत्मा से निकली रचना निम्न होती है । लेकिन आचार्यजी में 'सोने में सुहागा' जैसा संयोग बन पड़ा है । मनुष्य का जीवन मिलावटी सोना है, कच्चा हीरा है। उसे तपाकर ही कंचन बनाया जा सकता है, उसे तराशकर ही उसमें चमक लाई जा सकती है। 'मूकमाटी' हमें ऐसा करने की ही प्रेरणा देती है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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