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मूकमाटी-मीमांसा :: 413 जीवन का बोध है, लेकिन फल जीवन का शोध है । इसीलिए वह कहते हैं :
"फूल से नहीं, फल से/तृप्ति का अनुभव होता है ।" (पृ. १०७) इस पंक्ति को पढ़कर मुग्ध हो गया हूँ मैं । मेरी स्मृति में नरसी मेहता की एक पंक्ति उभरती है- "बीज मा वृक्ष तू, वृक्ष मा बीज हूँ"- बीज में वृक्ष और वृक्ष में बीज ! बीज की सार्थकता वृक्ष बनने में नहीं, पुन: बीज बनने में ही है । मुनि विद्यासागर और नरसी मेहता दोनों सन्तों को इस बिन्दु पर एक साथ होता देखकर लगा कि भारतीय मनीषा का जीवन में प्रवेश कितना सार्थक और कितना समरूप है।
लेकिन एक दो बातों की ओर संकेत भी । कवि ने कहीं-कहीं अपने कथन को अतिरिक्त विस्तार दिया है। यह शायद इसलिए भी हुआ क्योंकि मुनि विद्यासागर कवि होने के साथ एक प्रवचनकार सन्त महात्मा भी हैं। उनका लक्ष्य मात्र कविता लिखना नहीं है, अपितु कविता को अपनी बात कहने के माध्यम के लिए चुना है उन्होंने । यों यह भी सही है कि तनिक-सा ध्यान रखने पर कवि ऐसे अभिधापरक कथनों से बच सकता था।
'मूकमाटी' हिन्दी के प्रबन्ध साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । 'मूकमाटी' के लिए रचनाकार मुनि विद्यासागर को बधाई।
पृष्ठ ३२२ पात्रकी गति कोदेख कर ---... अभ्यागतका स्वागत प्रारम्भमा: