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________________ 'मूकमाटी' : हिन्दी प्रबन्ध साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि डॉ. देवेन्द्र दीपक सन्त सत्य और सत् के प्रचारक होते हैं, इसीलिए वे किसी वर्ग, जाति, भाषा या धर्म के लिए नहीं, वरन् सबके लिए होते हैं। उनकी रोशनी सबके लिए होती है । वे मात्र प्रचारक ही नहीं होते, वरन् किसी विचार का प्रचार करने से वे उस विचार को आत्मरस में पाग देते हैं। आचार और विचार दोनों एक रूप हो जाते हैं उनमें । कोई द्वैत नहीं रहता है दोनों में। आचार और विचार दोनों एक-दूसरे का अनुमोदन और समर्थन करते हैं। आचार्य मुनि विद्यासागर ऐसी ही सन्त परम्परा के आधुनिक जीवित तीर्थ हैं। ___ मुनि विद्यासागर नाम से ही विद्यासागर नहीं हैं, वरन् वह सचमुच में विद्या के सागर हैं। किसी भी विषय पर उनसे चर्चा की जा सकती है और आपको ऐसा लगेगा कि सचमुच हमें कुछ अतिरिक्त मिल रहा है, हमारे ज्ञान कोश में कुछ वृद्धि हो रही है। ___ अज्ञेय हिन्दी की एक श्रेष्ठ विभूति हैं। उनका एक कथन यहाँ उद्धृत करना चाहूँगा । उनका कहना है : "पश्चिम का कलाकार रूप (फ़ार्म) की खिड़की से देखकर वस्तु को संवेद्य बनाता है, उसका सम्प्रेषण करता है । भारत का कलाकार प्रतीक की खिड़की से वस्तु को नहीं, वस्तु के पार वस्तु सत् को संवेद्य बनाता है।" सन्त और फिर सन्त कवि ! उनकी लेखनी और वाणी तो प्रतीकों को अपने अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयुक्त करती है । 'मूकमाटी' एक प्रतीक काव्य है । ज्ञान, अध्यात्म और अनुभूति की एक त्रिवेणी है । 'मूकमाटी' और इस त्रिवेणी में प्रतीक बीच-बीच में जलावर्त जैसे हैं। पाठक का मन जब किसी ऐसे ही जलावर्त में फँसता है तो फिर धंसता ही जाता है। उबरने के लिए डूबना उसकी नियति है। अज्ञेय का ही एक उद्धरण और : "कृतिकार का उद्देश्य या लक्ष्य केवल अनुभव का सम्प्रेषण है । सहज बोध द्वारा अपनी अनुभूतियों से व्यापक अनुभवों में प्रवेश, उन अनुभवों की पकड़ और उनका सम्प्रेषण - यही उसका लक्ष्य 'मूकमाटी' के कवि के पास व्यापक जीवनानुभव हैं। ये अनुभव उसे पढ़कर नहीं, प्रत्यक्ष देखकर और भोगकर प्राप्त हुए हैं। 'मूकमाटी' जैसी कृति जीवन के व्यापक अनुभवों के बिना लिखी ही नहीं जा सकती। उनके अनुभव उनका अर्जन हैं और यह अर्जन उन्हें भ्रमण के द्वारा प्राप्त हुए हैं। ... मुनि विद्यासागर एक यायावर हैं। चातुर्मास के अतिरिक्त तो वह घूमते ही हैं। लोगों की आँखें खोलने के लिए घूमने वाला आदमी स्वयं आँख मूंद कर थोड़े ही घूमेगा । इससे भी आगे का सच यह है कि वह जीवन को आँख गड़ाकर देखते हैं। ऐसे व्यक्ति के पास जीवन के अनुभवों की क्या कमी हो सकती है ? __'मूकमाटी' के कवि का भाषा पर अच्छा अधिकार है । वह शब्दों को अपने ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सहमति-असहमति की अनेक सम्भावनाओं के बाद भी 'मूकमाटी' अपने ऐसे अनेक स्थलों के लिए रेखांकित की जायगी, जहाँ कवि अनेक प्रचलित शब्दों को अपने ढंग से तोड़ता है और उनमें एक नई अर्थवत्ता भरता है। यों ऐसे शब्द पाठक और श्रोता दोनों की स्मृति में स्थाई अधिवास बना लेते हैं। बानगी के रूप में केवल एक अंश : "हम तो 'अपराधी हैं/चाहते अपरा ‘धी' हैं।" (पृ. ४७४) लोग फूल को देखकर मुग्ध होते हैं, लेकिन 'मूकमाटी' के रचनाकार की दृष्टि इससे आगे जाती है । फूल
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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