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________________ 410 :: मूकमाटी-मीमांसा में, वर्ण-वर्ण में भाषा-सौन्दर्य की विद्यमानता चामत्कारिक है। सम-सामयिकता : प्रत्येक साहित्यकार सम-सामयिक परिवेश से प्रभावित होता है। रागी हो अथवा वैरागी समकालीन परिस्थितियाँ और समस्याएँ सभी को प्रभावित करती हैं। कला, कला के लिए विचारधारा के पक्षधर उद्देश्यविहीन साहित्य-सर्जना करके भी सम-सामयिक समस्याओं के विवेचन और निदान को अपनी कृति में उसी प्रकार स्थान देते हैं जिस प्रकार फ्रेम में चित्र शोभायमान होता है। 'मूकमाटी' के रचयिता आचार्य विद्यासागरजी का कथ्य जैन सिद्धान्त एवं मान्यताओं के अनुसार श्रावक को मुक्ति मार्ग का सरल एवं रुचिकर विवेचन है । परन्तु प्रसंगवश सायास अथवा अनायास अनेक सम-सामयिक मान्यताएँ, समस्याएँ एवं स्थितियों ने इस महाकाव्य में स्थान प्राप्त किया है। आजकल फैशन की बाढ़ में बहुत लोगों के वस्त्र पूर्वजों के समान सादे, इकरंगे और सात्त्विक नहीं होते। आज वस्त्रों के भड़कीले रंगों और डिजाइनों के साथ-साथ उन पर भाँति-भाँति के नारे भी अंकित होते हैं, यथा : . “अब तो'""/अस्त्रों, शस्त्रों, वस्त्रों/और कृपाणों पर भी 'दया-धर्म का मूल है'/लिखा मिलता है ।" (पृ. ७३) जब कोई व्यक्ति संसार का भौतिक आकर्षण त्याग कर आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है तो आजकल फूलमालाएँ और गगनभेदी नारों से उसका स्वागत किया जाता है । आज अध्यात्म भी प्रदर्शन का आधार बन गया है। कूप की एक मछली उद्धार की कामना से बालटी में सहर्ष आ जाती है । शेष मछलियाँ उसे भावभीनी विदाई देती हैं : "तरंगों से घिरी मछलियाँ/ऐसी लगती हैं कि/सब के हाथों में एक-एक फूल-माला है/और/सत्कार किया जा रहा है/महा मछली का, नारे लग रहे हैं-/'मोक्ष की यात्रा/"सफल हो...।" (पृ. ७६) पतितों, पिछड़े एवं उपेक्षितों का पक्षग्रहण भी अधुनातन प्रवृत्ति है । 'मूकमाटी' के दो प्रसंगों में यह प्रवृत्ति प्रतीत होती है । फूल को सभी आदर एवं स्नेह देते हैं और शूल अब तक घृणा एवं उपेक्षा सहता आया है । कवि का कोमल मानस शूल के प्रति द्रवित हो उठता है । उसकी दृष्टि में शूल के समक्ष फूल तुच्छ बन जाता है : “कामदेव का आयुध फूल होता है/और/महादेव का आयुध शूल । एक में पराग है/सघन राग है/जिसका फल संसार है/एक में विराग है अनघ त्याग है/जिसका फल भव-पार है।” (पृ. १०१-१०२) वैदिक ऋषि ने समाजरूपी पुरुष का जो चित्र प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया है उसमें क्षत्रिय को हाथ और शूद्र को चरण माना है । अ-सवर्णों के प्रति सहानुभूति के इस युग में आचार्यश्री की दृष्टि में कर यानी हाथों की अपेक्षा चरण का महत्त्व अधिक हो गया है : "कर प्राय: कायर बनता है/और/कर माँगता है कर/वह भी खुल कर ! इतना ही नहीं,/मानवत्ता से घिर जाता है/मानवता से गिर जाता है; इससे विपरीत-शील है पाँव का/परिश्रम का कायल बना यह पूरे का पूरा, परिश्रम कर/प्रायः घायल बनता है/और/पाँव नता से मिलता है पावनता से खिलता है।" (पृ. ११४) (मात्र बिन्दी हटाने से अर्थ परिवर्तन)
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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