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मूकमाटी-मीमांसा :: 401
स्वर्ण कलश और माटी के कलश का वार्तालाप, कुम्भ और माटी का वाद-विवाद, अन्य सभी पात्रों की उत्तेजना का चित्रण, मच्छर-मत्कुण प्रसंग, सेठ की मूर्छा, अनेक प्रकार के उपचारों की चर्चा, पुरुष और प्रकृति के सम्बन्धों का विश्लेषण, कलियुग में अर्थ का प्राधान्य, माटी से सर्वोत्तम उपचार की विधि-विवेचना, आतंकवाद का उद्भव आदि ।
आतंकवाद को लेकर विस्तृत चित्रण किया गया है और उसी के माध्यम से अन्य तमाम बातों की चर्चा तथा विवेचना की गई है। आज सारे देश में आतंकवाद का जोर है जो सारे नियम-कायदों, नैतिकता-मर्यादा और परम्पराओं की हत्या कर मनमानी करने पर उतारू है । हिंसा, लूटपाट, दुराचार ही उसका चरित्र है । आतंकवाद के डर से सेठ परिवार कुम्भ के निर्देश पर घर छोड़कर पलायन करता है किन्तु आतंकवाद अपनी विविध शक्तियों से कुम्भ तथा सेठ परिवार को विनष्ट करने की पूरी चेष्टा करता है- कभी भारी वर्षा, ओलावृष्टि, जलप्लावन, जल-जन्तुओं का प्रयोग आदि । लेकिन इसी के साथ कभी गज या सर्प दलों द्वारा, कभी पवन द्वारा कुम्भ व सेठ परिवार की निरन्तर रक्षा भी। कुम्भ द्वारा नदी को डाँटकर धरती की मौलिक व्याख्या । अन्ततः नदी के आक्रोश का शमन । हृदय-परिवर्तन । आतंकवाद द्वारा पुनः प्रयास किन्तु नदी द्वारा असहयोग । नदी स्पष्ट कहती है :
“अब/बल का दुरुपयोग नहीं होगा/समर्पण हो चुका है
ऊर्जा उपासना में उलट चुकी है/उर में उदारता उग चुकी है।" (पृ. ४५९) फिर भी दुराग्रही, अहंकारी आतंकवाद मानने को तैयार नहीं। वह पत्थरों की वर्षा कर सभी को पाताल भेजने की चेतावनी देता है । जाल में फंसाने की चेष्टा तथा देवताओं की भी उपेक्षा करता है। आतंकवाद पराजित हुआ। उसकी सारी कुचेष्टाएँ विफल हो गईं। सेठ परिवार कुम्भ और रस्सी के सहारे सकुशल सुरक्षित नदी पार हो गया और इस प्रकार अन्तत: सत्य और सदाचार की विजय हुई :
"आतंकवाद का अन्त/और/अनन्तवाद का श्रीगणेश!" (पृ. ४७८) कुम्भ की सफलता पर माँ धरती सहित सभी को हार्दिक प्रसन्नता हुई। सभी के भीतर मंगलमयी भावनाओं का उदय हुआ। स्वयं कुम्भ के मुख से मंगलवाणी निकली :
“यहाँ सब का सदा/जीवन बने मंगलमय/छा जावे सुख-छाँव, सबके सब टलें-/अमंगल-भाव,/सब की जीवन लता
हरित-भरित विहँसित हो/गुण के फूल विलसित हों।” (पृ. ४७८) इस प्रकार जीवन-साधना के चार सर्ग उद्घाटित हुए- १. कुम्भकार के संसर्ग से सृजनशील जीवन का प्रारम्भ, २. चरणों में समर्पण से अहं का उत्सर्ग, ३. समर्पण के बाद कठिन-से-कठिन परीक्षाएँ, ४. परीक्षा के बाद प्राप्त परिणाम।
अन्त में अपने सृजन से माटी को सार्थकता प्रदान करने वाले कुम्भकार द्वारा सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गई। साधु महाराज द्वारा शाश्वत सुख के लाभ का शुभाशीष । अविनश्वर सुख की व्याख्या करते हुए अखण्ड विश्वास की अभिव्यक्ति की जाती है :
"बन्धन-रूप तन,/मन और वचन का/आमूल मिट जाना ही/मोक्ष है। इसी की शुद्ध-दशा में/अविनश्वर सुख होता है।" (पृ. ४८६) "विश्वास को अनुभूति मिलेगी/अवश्य मिलेगी मगर/मार्ग में नहीं, मंजिल पर!" (पृ. ४८८)