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मूकमाटी-मीमांसा :: 393
में आ जाता है । इसके साथ-साथ मानव-जीवन का वर्णन भी इस प्रकार आता है कि बचपन से बुढ़ापे तक, विरह से मिलन तक, जीवन से मृत्यु तक सारे रूपों का परिचय आ जाता है। 'मूकमाटी' में भी सूर्य, चन्द्र, पर्वत, सागर आदि का चित्रण मिलता है । मानव-जीवन का भी वर्णन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मिलता है। केवल इतना ही नहीं, कवि समाज की कुप्रथाओं से दुखित मनुष्य के स्वार्थ का चित्रण भी करता है। ऐसे बहुत से उदाहरण काव्य में देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए :
___ "...खेद है कि/लोभी पापी मानव/पाणिग्रहण को भी
प्राण-ग्रहण का रूप देते हैं।” (पृ. ३८६) (६) शीर्षक: सामान्यत: महाकाव्य का नाम कवि, नायक, घटना, स्थान या कथा तत्त्व के आधार पर रखा जाता है।
इस काव्य का शीर्षक 'मूकमाटी' है । इस शीर्षक की महत्ता इसी में छिपी हुई है। मिट्टी की महिमा और उसके मूक होने की गरिमा काव्य की विशेषता है । मंगल घट बनता मिट्टी से ही है, सृष्टि के अधिकांश जीव, मानव को भी उसमें मिलाकर इस धरती पर ही पलते हैं । काव्य का केन्द्र बिन्दु भी मिट्टी ही है। इसलिए इसका शीर्षक
'मूकमाटी' समीचीन और अर्थ गर्भित है। (७) उद्देश्य : महाकाव्य का उद्देश्य पुरुषार्थ की प्राप्ति है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष रूप पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए
नायक जो संघर्ष करता है, जिस साधना में निरन्तर लगा रहता है, इसी के चित्रण को महाकाव्य का उद्देश्य माना जाता है । 'मूकमाटी' महाकाव्य काया, वाचा एवं मनसा लोकहित और विश्वकल्याण की भावना को लेकर चलता है । इसकी बुनियाद क्षमा गुण है । आज संसार को जल और वायु से ज्यादा क्षमा गुण की आवश्यकता है। एक सूत्र काव्य में आया है- 'खम्मामि खमंतु में' यानी क्षमा करता हूँ सबको, क्षमा चाहता हूँ सब से(पृ. १०५)। कवि की दृष्टि में सारे पुरुषार्थों का आधार क्षमा गुण है । इस काव्य का एक और लक्षण अनेकान्त दृष्टि है। कुम्हार, मिट्टी तथा घट केवल प्राकृतिक साधन हैं । यहाँ कुम्हार गुरु का स्वरूप है तो मिट्टी मानव का । मानव धीरे-धीरे लौकिकता से अलौकिकता की ओर, नश्वरता से अमरत्व की ओर, मृण्मयता से चिन्मयता की ओर अग्रसर होकर पूर्णत्व को पा लेता है। यही प्रतीक मंगल घट का रूप है । 'परोपकारार्थमिदं शरीरम्'- मनुष्य शरीर परोपकार के लिए है । इस प्रकार की भावना से मंगल घट अन्त में नदी के प्रवाह में सेठ के प्राण बचाता है । महाकाव्य के सारे लक्षण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से 'मूकमाटी' में हैं। शास्त्रकारों के अनुसार महाकाव्य कथा प्रधान, चरित्र प्रधान, अलंकार प्रधान अथवा भाव प्रधान होते हैं।
हमारी दृष्टि में 'मूकमाटी' भाव प्रधान महाकाव्य है । इसमें दूसरी विशेषताओं के साथ-साथ वैचारिक दृष्टिकोण तथा दार्शनिक चिन्तन प्रधान होता है। समूचे काव्य को पढ़ने के बाद कथा और पात्र से बढ़कर, कर्त्तव्य की प्रेरणा और उसकी भावात्मक विचारधारा हमें प्रभावित करती है । इन सारे विचारों से आचार्य विद्यासागरजी की कृति 'मूकमाटी' एक यशस्वी महाकाव्य है। महाकाव्य 'मूकमाटी': एक विश्लेषण
'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी का आदिकालीन महाकाव्य माना जाता है, इसी प्रकार 'मूकमाटी' अत्याधुनिक महाकाव्य है। हिन्दी काव्योद्यान में अनगिनत, रंग-बिरंगे सुगन्धित पौधे हैं, उसमें मूकमाटी' महकती हुई फूलों से लदी एक कोमल वल्लरी है। पूरे काव्य के अध्ययन से यह पता चलता है कि कवि को रूपक तत्त्व प्रिय है। नदी, कंकर, मिट्टी जैसे व्यक्त माध्यम के द्वारा अव्यक्त का परिचय कवि कराता है । कहीं-कहीं अव्यक्त के ज़रिए व्यक्त का अनुभव भी हमें कराया जाता है । कवि का आशय मंगल घट के द्वारा एक साधक का पूर्ण परिचय कराना है। साधक श्रद्धा से अपने मार्ग में निरन्तर आगे बढ़ता है, सम्यक् आचरण और सम्यक् ज्ञान उसे आनन्द के रस तक ले जाते हैं। यही पूर्णत्व है।