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388 :: मूकमाटी-मीमांसा
आदि । सूक्तियाँ : “बगुलाई छलना, अलं विस्तरेण" आदि । इसके साथ ही भाषा में संस्कृतनिष्ठ शब्द, संस्कृत के तत्सम, तद्भव एवं अरबी, फारसी, अंग्रेजी भाषा आदि के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, जो कदाचित् हिन्दी के रमे हुए ही शब्द हैं।
शैली की दृष्टि से 'मूकमाटी' की विशिष्टता है कि इसमें अनेक शैलियों का प्रयोग कवि ने किया है, यथाप्रश्नात्मक शैली, तर्क शैली, समीक्षात्मक शैली, मनोवैज्ञानिक शैली, दृष्टान्त शैली और तुलनात्मक शैली आदि । तुलनात्मक और दृष्टान्त शैली का स्वरूप देखिए : तुलनात्मक शैली : "इस युग के/दो मानव/अपने आप को/खोना चाहते हैं
एक/भोग-राग को/मद्य-पान को/चुनता है;
और एक/योग-त्याग को/आत्म-ध्यान को/धुनता है। कुछ ही क्षणों में/दोनों होते/विकल्पों से मुक्त । फिर क्या कहना!/एक शव के समान/निरा पड़ा है,
और एक/शिव के समान/खरा उतरा है।" (पृ. २८६) दृष्टान्त शैली: 'साधु बन कर/स्वाद से हटकर/साध्य की पूजा में डूबने से
योजनों दूर वाली मुक्ति भी वह/साधक की ओर दौड़ती-सी लगती है
सरोज की ओर रवि किरणावली-सी।" (पृ. ३८२-३८३) 'मूकमाटी' में अलंकारों का प्रयोग पग-पग पर दिखाई देता है । अनुप्रास और उपमा तो ऐसे हैं, जैसे वे कवि के प्रिय अलंकार ही हों, जो चमत्कार करते हैं। भावों को स्पष्ट करने के लिए 'मूकमाटी' में जिन अलंकारों का प्रयोग हुआ है, उनमें मुख्य अलंकारों की सूची द्रष्टव्य है :
अनुप्रास : "प्राची के अधरों पर/मन्द मधुरिम मुस्कान है।" (पृ. १) उपमा: "सिन्दूरी धूल उड़ती-सी/रंगीन-राग की आभा ।" (पृ. १) प्रतीक: "अतिथि के अभय-चिह्नित/उभय कर-कमलों में
संयमोपकरण दिया मयूर-पंखों का/जो
मृदुल कोमल लघु मंजुल है।" (पृ. ३४३) यमक : 0 "किसलय ये किसलिए/किस लय में गीत गाते हैं ?/किस वलय में से आ
किस वलय में क्रीत जाते हैं ?/और/अन्त-अन्त में श्वास इनके किस लय में रीत जाते हैं ?" (पृ. १४१-१४२) "हाय रे !/समग्र संसार-सृष्टि में/अब शिष्टता कहाँ है वह ? अवशिष्टता दुष्टता की रही मात्र!" (पृ. २१२) "सत्य का आत्म-समर्पण/और वह भी/असत्य के सामने ?/हे भगवन् ! यह कैसा काल आ गया,/क्या असत्य शासक बनेगा अब ?
क्या सत्य शासित होगा?" (पृ. ४६९) श्लेष: “हरिता हरी वह किससे ?/हरि की हरिता फिर
किस काम की रही ?" (पृ. १७९)
सन्देह :